छठी छाया उपादानलक्षणा और लक्षणलक्षणा उपयुक्त दोनों लक्षणाओं में भारी भ्रम फैला हुआ है । प्रारम्भ में ही यह जान लेना चाहिये कि मुख्यार्थ के बनाये रखने या छोड़ने के आधार पर ही यह भेद निर्भर करता है। लक्षणा-शक्ति अर्पित शक्ति है । वक्ता की इच्छा शब्दों को यह शक्ति अर्पित करती है। अतः लक्षणा का स्वरूप बहुत कुछ विवक्षाधीन रहता है। उपादान •लक्षण में इतना ही कहा गया है कि मुख्यार्थ का भी उपादान होना चाहिये । इसलिए उसका नामान्तर 'अजहत्स्वार्थी' भी है। अतः यह कहनेवाले की इच्छा पर निर्भर है कि मुख्यार्थ का अन्वय करे या न करे। जब वाक्यार्थ में मुख्यार्थ अन्वित होगा तब उपादानलक्षणा होगी और जब अन्वय न होगा तब लक्षण- लक्षणा! एक उदाहरण ले- गात पै लँगोटी एक बोटी पर मांस लिये पैतिस करोड़ भारतीयता की थाती है। भारत के भाग्यमानु, कमवीर गांधी तेरे ___ तीन हाथ गात 4 हजार हाथ छाती है।-अंबिकेश यहाँ 'एक बोटो भर मांस लिये का अर्थ जब हम यह करते है कि 'शरीर में थोड़ा ही मांस रखनेवाले तब तो उपादानलक्षणा होती है। क्योंकि, इसमें मांस अपने अर्थ को नहीं छोड़ता और जब 'एक बोटी भर मांस लिये' का अर्थ 'दुबलो देह' करते हैं तब लक्षणलक्षणा हो जाती है। क्योंकि इसमें मांस अपना अर्थ एकदम छोड़ देता है । वहाँ अत्यन्त कृश बताना हो प्रयोजन है। कितने पण्डितमन्य 'सारा घर तमाशा देखने गया है। इस उदाहरण में उपादानलक्षणा नही मानते । उनका कहना है 'घर' तो अपने साथ लकड़-खप्पड़ लादकर तमाशा देखने जायगा नहीं और देखनेवाले के साथ वहाँ घर का रहना आवश्यक है । इससे यहां उपादानलक्षणा नहीं हो सकती। पर यह शंका भ्रममूलक है क्योंकि 'घरवाले' कहने से घर का अर्थ नही छूटता । इस अर्थ में उपादानलक्षणा होगी। जब 'सारा घर' का अर्थ 'सब-के-सब' लिया जाय तब लक्षणलक्षणा होगी। "क्योंकि, इसमें घर एक बार हो छूट जाता है। उपादानलक्षणा का लक्षण-लक्षणा से पाय दिखाने के लिए शब्द का अन्वय नहीं होता, यह लिखा जाना असंगत है। शब्द का अन्वय होता है, यह एक नयी
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