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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१५६

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प्रत्रिक अनुभव के मेद कहै 'पदमाकर' लटू है लोट पोट भई, चित्त में चुभो जो चोट चाप चटवारे की। बावरि लौ बूझति बिलोकति कहा तू बीर, जाने कोई कहा पीर प्रेम हटवारे की। उमड़ि उमडि बहै बरसे सु ऑखिन है घट में बसी जो घटा पीत पटवारे की। ८. प्रलय . श्रम, मोह, मद, निद्रा, मूर्छा आदि से यह उत्पन्न होता है। किसी पदार्थ में लीन होना, निश्चेष्ट होना, अपनत्व को भूल जाना आदि इसके अनुभाव होते हैं। १ राजमद, तीन मदिरा का मद उस पर, भीषण विजयमद-मिलकर तीनों ने गोरी की समस्त चेतना को एक साथ ही, घेर कर अन्धी और पंगु बना डाला है।-वियोगी . २ कैसे कहीं कामिनी की अकथ कहानी बीर , नेकु ना कबीशन की बुद्धि परसति है। .. , बोलति न चालति न हालति हरिन नैनी ___जागति न सोवति अजीब कैसी गति है। . .. कहे चिरजीवी' कारे कान्ह के डॅसेते आज सेज पै परी सी परी सोक सरसति है।' कुन्दन की कामी तप्त काम जरगर मंत्र ढली अति भली दीप्तिमान दरसति है ॥ . . निम्नलिखित कवित्त में उक्त बाठो भेदों के उदाहरण हैं :- ह रही अडोल, थहरात गात बोले नॉहि बदल गयी है छटा बदन संकार की। भरि भरि आवे नीर लोचन दुहन बीच सराबोर स्वेदन में सारी रंग तार की। पुलकि उठे हैं रोम, कछक अचेत फेरि कवि 'लछिराम' कौन जुगुत विचारे की। बानक सो डगर अचानक मिल्यो है लगी नजर तिरीछी कहूँ पीत पटवारे की। ग्यारहवीं छाया नायिका के २८ अनुभाव स्त्रियों की यौवनावस्था के निम्नलिखित अट्ठाईस प्रकार के अनुभाव होते हैं, जो अलंकार माने गये है। इनके भी तीन प्रकार हैं-१ अङ्गज, २ अयनज का० ६०-१०