पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१५७

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काव्यदर्षया (१)१ भाव (प्रथम लक्षित राग), २ हाव (अल्पस् लक्षित विकारात्मक भाव ) और ३ हेला (अत्यन्त स्फुट विकारवाला भाव ) नामक तीन अलंकार अंग से उत्पन्न होने के कारण अंगज है। भाव का एक उदाहरण- कैसा यह, कैसा यह, भावना से प्रेरणा का प्राणों से है मन का अमिट संयोग हुमा। कैसी यह जीवन में लसित तरंग सखि?-भट्ट (२) १ शोभा ( शरीर की सुन्दरता ), २ कान्ति (विलास से बढ़ी शोभा), ३ दौप्ति ( अति विस्तीर्ण कान्ति ), ४ माधुर्य, ५ प्रगल्भता, ६ औदार्य और ७ धैर्य नामक सात अलंकार कृत्रिम न होने के कारण अयत्नज है। दीप्ति का एक उदाहरण- नील परिपान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अषखुला अंग । खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघ बन बीच गुलाबी रंग।-प्रसाद (३) १ लीला, २ विलास, ३ पिच्छिसि ( शृङ्गागधायक अल्प वेषरचना), ४ विन्चोक (गर्वाधिक्य से इच्छित वस्तु का अनादर), ५ किलकिचित् (प्रिय बस्तु की प्राप्ति श्रादि के हर्ष से हास, अभिलाष आदि कई भावों का संमिभण), ६ मोटा- यित (प्रिय-सम्बन्धी बातों में अनुराग-योतक चेश), ७ कुछमित (अंगस्पर्श से आन्तरिक हर्ष होने पर भी निषेधात्मक कर, सिर आदि का संचालन),८विश्रम (अल्दी में वस्त्राभूषण का विपरीत धारण), ललित (अंगों की सुकुमारता का प्रदर्शन), १० मद, ११ विहत (लज्जावश समय पर भी कुछ न कहना), १२ तपन १३ मौग्थ्य, १४ विक्षेप (अकारण इधर-उधर देखने प्रादि से बहलाना). १५ कुताल, १६ लखित. १७ चकित और १८ केलि-ये अठारह रुति-साध्य होने के कारण स्वभावज अलंकार हैं। मद का एक उदाहरण- मैं सुमनों का हृदय कहानी सुन रही; मैं कलिका के मोठों पर मधु छिड़कती ! प्रात बात के उष्ण श्वास पीकर मविर अपने में ही मूल रही बेसुष बनी।-भा विस्त का एक उदाहरण- प्रणाम कर यह तमता से मुका निगाहें शरम से गड़कर, हंढाये पीछे को पैर ज्यों ही कुमार ने अंक में लिया और .... सुका के सर को निकाल पूषक युगों को उसने लया के बीच मत