पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१७०

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संचारी भाव २२. अपस्मार श्रपरमार चित्त की वह वृत्ति है, जिसमें मिरगी रोग का-सा लक्षण लक्षित होता है। भूतावेश, वेदना, आघात, आदि से हृदय दुर्बल होना, इसका कारण है । गिर- गिर पड़ना, कँपकँपौ श्राना, मुंह से झाग निकलना आदि अनुभाव हैं। जा छिनते छिन. साँवरे राबरे लागे कटाच्छ कछ भनियारे । त्यों पद्माकर ता छिनते तिय सों अंग अंग न जात सम्हारे । हवै हिय हायल घायल-सी धन धूमि गिरि परे प्रेम तिहारे । नैन गये फिर फेन बहे मुख चैन रह्यो नहि मैन के मारे । ' यहाँ नायिका की स्थिति में अपस्मार को व्यक्षजना है। २३. स्वप्न निद्रानिमग्न पुरुष के विषयानुभव का नाम स्वप्न है। इसमें कोप, आवेग, भव, ग्लानि, सुख, दुःख आदि अनुभाव होते हैं। जाग्रदवस्था में भी स्वप्न में वर्तमान को-सी चित्त को दशा का होना भी स्वप्न है।। १ खुल गये कल्पना के नेत्र महीपाल के दीख पड़ी वुद्धा पराधीना बंदिनी- ... - आर्यभूमि रक्त बहता है अंग-अंग से ।-आर्यावर्त । .१२ मानस की सस्मित लहरों पर किस छवि की किरणें अज्ञात, रजत स्वर्ण में लिखती अविक्ति तारक लोकों की शुचि बात? किन जन्मों की चिरसंचित सुधि बजा सुप्त तंत्री के, नयन नलिन में बँधी मधुप-सी करनी गर्म मधुर गुज्जार ।-पंत इसमें स्वप्न को व्यंजना है। . .. .. २४. विबोध निद्रा दूर करनेवाले कारयो से वा अशान के मिटने से सचेत होने का नाम विबोध है । इसमें जम्हाई, अँगड़ाई, मुख पर प्रकाश, शांति श्रादि अनुभाव होते हैं। .... कुंज भवन तजि भवन को चलिये नन्दकिसोर । फूति कली गुलाब की घटकाहट बहुँ ओर।-बिहारी; गुलाब की कली की चटकाहट से नवोढ़ा का जागरण प्रतीत होता है। . हाथ जोड़ बोला साश्रु नयन महीप यों। ___ 'मातृभूमि इस तुक्ष जन को क्षमा करो। धोंऊँगा कलंक रक्त देकर शरीर का। माज तक लेयो तरी मैंने पाप-सिंधु में, ..: अब खेऊँगा उसे बार में कृपाण की। मार्यावतं इस उक्ति से देशद्रोही जयचंद का विवोध व्यंग्य है।