पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१७१

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काव्यदर्पण २५. अमर्श निन्दा, अपमान, मान हानि आदि के कारण उत्पन्न चित्त की चिद वा असहिष्णुता अमर्ष है। इसमें नेत्रों का लाल होना, भौंहों का चढ़ना, तन-गर्जन, संताप, प्रतिकार के उपाय श्रादि अनुभाव होते है। जहां गया तू वहीं राम लक्ष्मण जायेंगे- रण में मेरी दृष्टि आज यदि वे आवेगे । उठने की है देर आज ही प्रलय करूंगा रावण हूँ मै पुत्र ! सहज मै नहीं मारू गा।-रा० च० उपा० इससे रावण का अमर्ष व्यक्षित होता है। गरब सुअंजन ही बिना कंजन को हरि लेत । खंजन मद भंजन अरथ अंजन अंखियन देत ।-बिहारी ___इस दोहे से कंजन और खंजन पर अमर्ष व्यजित होता है। क्योंकि वे यो हो कमल को कान्ति और काजल डालने पर खंजन के मानमर्दन को मुस्तैद हैं। २६. अवहित्था भय, गौरव, लज्जा आदि से उत्पन्न हर्षादि के भावो को चतुराई से बिपाने बनाम अवहिल्या है। अन्य दिशा की ओर देखना, मुँह नीचा कर लेना, बात- चीत को पलट देना, जम्हुआना श्रादि इसके अनुभाव है। कपिवर का लांगूल बँधा पट-सन-बल्कल से कपि ने साषा मौन पराभव सहकर खल से । मार-मारकर असुर कोट को लगे नचाने, बाजे रंग-विरंग मग्न हो लगे बजाने ।-रा० च• उपा. इसमें हनुमानजी के अपने भाव को गुप्त रखने की व्यञ्जना है। देखन मिस मृग, विहग, तह फिरय बहोरि, बहोरि। निरखि-निरखि रघुबीर छबि, बाढ़इ प्रीति न चोरि । तुलसी रामदर्शन को लालसा से सीता के मृग, विहग देखने को बहानेबाजी से अहित्या ध्वनित है। २७. उग्रता अपमान, दूषित व्यवहार, वीरला बादि के कारण उत्पन्न निर्दयता ही उग्रता है। इसमें घुड़कना, डांटना-पटना, मारना श्रादि अनुभाव है। स.संवेनशील हो चले यही मिला कुन । कब समझने लले बनाए जि.लगमा कुरा