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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१९८

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११० काव्यदर्पण तेईसवीं छाया रसनीय भावों की योग्यता विचेष्टर के मत से निम्नलिखित पांच तत्त्व हैं जो भावों में तीव्रता उत्पन्न करके उन्हे रस-पदवी को पहुँचाते हैं, रस को उत्कृष्ट बनाते हैं। पहला है मनोवेग की वा भावना को योग्यता, न्याय्यता वा औचित्य ((Propriety)| अभिप्राय -यह कि किसी भी भावना का श्राधार उचित हो। ऐसा न होने से उत्कृष्ट मनोभाव भी निर्बल हो जा सकता है। किसी को टिक्ट बटोरने को लगन है। कोई सिनेमा देखने का आदी है । इस प्रेम वा असक्ति को हम सनक ( Hobby ) कह सकते हैं । इनमें साहित्यिक रचना की योग्यता नहीं । ये स्थायी भाव को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इससे आवश्यक है कि कोई भी रचना हो, उसकी आधारशिला वा पृष्टभूमि सवल, गंभीर और मामिक हो । रचना का मूल्य इसीसे निर्धारित होना चाहिये कि उससे उद्वलित मनोभाव योग्य, उपयुक्त, यथार्थ वा उचित है । दूसरा है-भावना की तीव्रता ( Power ) और विशदता (Vividness) अर्थात् वयं विषय को प्रत्यक्ष कराने की सामर्थ्य । जब हम किसी रचना को पढ़कर भावमग्न हो जाते हैं और देश-दुनिया को भूल जाते है तब हम उस रचना को तीव्र और समर्थ कह सकते हैं । भावो की तीव्रता और विशदता राग-द्वेष-जैसे सक्रिय भावों को उत्तेजित करती हैं वैसे ही शान्त और करुण-जैसे निष्क्रिय भावों को भी । ये दोनों बातें भावों को स्थायित्व भी प्रदान करती हैं। ये दोनों बातें बहुत कुछ रचनाकार के अन्तर की गम्भौरता तथा संवेदनशीलता पर निर्भर करती हैं। यही कारण है कि पंचवटी-प्रसंग पर की गयी 'निराला' और 'गुप्त' को कविताओं में गहनता, निगूढ़ता, साकारता तथा अनुभूति को मामिकता की दृष्टि से बहुत कुछ अन्तर दीख पड़ता है । इनके लिए प्रकाशन-शक्ति भी होनी चाहिये । तीसरा है--मनोवेग को स्थिरता वा चिरकालिकता ( Steadiness)। स्थिरता से अभिप्राय यह है कि बाहित्यिक रचना होने के लिए मनोवेगों या भावनात्रों में स्थायित्व होना चाहिये । नाटक, दर्शन वा काव्याध्ययन के समय हमारे मनोभाव एक समान तरंगित वा उद्वलित होते रहें । इनका उत्थान-पतन तो अपेक्षित हैं, पर भंग नहीं ; क्योंकि ऐसा होने से रचना रसवतो नहीं कही जा सकतो । स्थायित्व और तत्य से यह भी अभीष्ट है कि रचना में चिरकालिकता होनी चाहिये । जैसे कि रघुवंश, रामावण, शकुन्तला, प्रियप्रवास, साकेत कामायनी आदि हैं। प्रतिभाशाली कवि और लेखक तथा कुशल कलाकार हो स्थिर मनोवेगवाली रचना कर सकते हैं।