पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२१९

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काव्यानन्द के कारण १ प्रतिपत्ति में आयोग्यता अर्थात् विश्वासयोग्य न होना, मन में न पैठना। उसको संभावनाविरह अर्थात् वर्णनीय वस्तु की असंभवता कहते हैं। ___ कल्पनाप्रिय कवि जो कुछ वर्णन करता है उसमें ऐसी बुद्धि कभी न जगनी चाहिये कि क्या यह कभी संभव है ? जहाँ ऐसी बुद्धि उपजी कि रसानुभूति हवा हुई। जब हम यशोदा-विलाप, विरहिणी उर्मिला का कथन, गोपी-उद्धव-संवाद पढ़ते हैं तब हमारे मन में यह भावना नहीं जगती कि इन सबों से ऐसा विलाप-बालाप, संलाप-कलाप न किया होगा। फिर हम उसके रस में मग्न होते है। वहाँ साहित्यिक सत्य सपने में भी इनको असंभवता को, अप्रत्ययता को फटकने नहीं देता। कारण यह कि मातृवात्सल्य, पुत्रवियोग, पतिवियोग, प्रियवियोग श्रादि में सभी कुछ संभव हैं। पर, भारतीयों का संस्कृति-संस्कृत हृदय 'मेघनादवध' काव्य की स्त्रीसेना से राग के संत्रस्त होने आदि की घटनाओं में बैसा रसमग्न नहीं होता। क्योंकि, प्रतिपत्ति को अयोग्यता-संभावना का अभाव है। ___ इसमें प्राचार्यों को अनौचिव प्रतीत होता है । कथावस्तु, वर्णन आदि में अनौचित्य को प्रश्रय न मिलना चाहिये । उचित-विषय-निष्ठता एक बड़ी वस्तु है । प्रायः सभी प्राचार्यों ने कहा है कि अनौचित्य ही रसभंग का कारण है और औचित्य योजना रसप्रकाशन का परम उपाय' । लोचन में भी अभिनव गुप्त कहते हैं कि 'वर्णन ऐसा होना चाहिये जिसको प्रतीति का खण्डन न हो। पाश्चात्य भी संभावना-विरह के सिद्धान्त को मानते हैं। २-३ अपने और पराये के नियम से देश और काल का आवेश होना । अभिप्राय यह कि नाटकगत पात्रों में सुख-दुख के जो भाव देखे जाते हैं वे उन्होंके मान लिये जाय तो सामाजिक उनसे उदासीन हो जायेंगे और उन्हें रख को प्रतीति नहीं होगी। यदि दर्शक के मन में ऐसे खयाल आ जाये कि हमने ऐसे ही मुख-दुःख भोगे हैं और ऐसे विचार में फंस जायें कि ये बाते भूलने की नहीं, या इनको छिपाना चाहिये या इनको खुलेश्राम कह देना चाहिये, तो दूसरे संवेदन की उत्पत्ति हो जायगी, जो प्रस्तुत रसास्वाद के लिए भारी विघ्न होगा। देश-विशेष, व्यक्ति-विशेष की निरपेक्षता ही से सच्ची रसानुभूति हो सकती है। यही साधारणीकरण का व्यापार है। इससे स्वगतत्व और परगतत्व का भाव मिट जाता है। अतः एक संवेदना के समय दूसरी सवेदना का होना रनावाद का परम विघ्न है। १ अनौचित्यादृते नान्यत् रसभङ्गस्य कारणम् । प्रसिद्धौचित्यबन्धस्तु रसस्योपनिषत्परा । धन्वालोक