पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२२०

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१३२ काव्यदर्पण ४-अपने सुख आदि से ही विवश हो जाना। अभिप्राय यह कि यदि किसी का बेटा हुआ हो या बेटा मर गया हो, उसको यदि नाटक-सिनेमा दिखाकर उसका मन बहलाया जाय तो यह असंभव है; क्योकि रह-रहकर उत्तका ध्यान अपने सुख-दुःख की ओर हौ खिच जायगा । निज सुखादि-विवशोभूत व्यक्ति वस्त्वन्तर मे अपनी चेतना को संलग्न कर ही नहीं सकता। इससे नाटक श्रादि में नृत्य, वाद्य, गीत आदि का प्रबन्ध रहता है, जिससे मनोरंजन हो, हृदय का किल्विष दूर हो और साधारणतः असहृदय भी सहृदय हो जायें। ५-प्रतीति के उपायों की विकलता और उसका स्फुट न होना।। अभिप्राय यह कि जिन उपायों से प्रतीति होती है उन्हीं का यदि अभाव हो और वे उपाय यदि अस्फुट हो तो प्रतीति कभी हो नहीं सकती। स्फुट प्रतीति होने के लिए उपायों को विकलता और अस्फुरता न होनी चाहिये । भावानुभूति के लिए प्रसाधनों को पूर्णता, वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण होना आवश्यक है। उपायों की अयोग्यता, अपूर्णता और अस्फुटता रसास्वाद के बाधक है। विभावादि से परिपोष पाकर स्थायी भाव हो रसत्व को प्राप्त होते हैं, यह न भूलना चाहिये ! इस विघ्न को दूर करने के लिए नाटक का अभिनय उच्च कोटि का होना चाहिये । ६-अप्रधानता । अप्रधान वस्तु में किसी की लगन नहीं लगती। यदि कोई प्रधान वस्तु हो तो मन आप हो श्राप अप्रधान को छोड़कर प्रधान की ओर दौड़ जाता है। यहाँ अप्रधान हैं विभाव, अनुभाव और संचारी । यद्यपि ये आस्वाद- योग्य हैं, फिर भी परमुखापेक्षी हैं। चर्वणा के पात्र स्थायी भाव ही हैं-आस्वाद- योग्यता उन्हीं में है। इससे प्रधान ये ही हैं और सभी अप्रधान । सारांश यह कि मुख्य वस्तु रस है । यिभाव आदि गौण हैं। जहां गौण को ही प्रधान बनाने की चेष्टा हो वहां प्रधानता नामक रसविघ्न उपस्थित हो जाता है। ७-संशय-योग अर्थात् संदेह उपस्थित होना। यह कोई नियम नहीं कि अमुक-अमुक विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी अमुक-अमुक स्थायी के हो हो। आँखों से आंसू आँख पाने में भी निकलता है, आनन्द में भी और शोक में भी। जहाँ यह संशय हो कि आँसू आनन्द के हैं या शोक के, वहाँ रसानुभाव नहीं हो सकता। पर, विभाव यदि बन्धु-विनाश हो तो यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि रोना-धोना शोक के ही अनुभाव हैं; चिंता, दैन्य उसी के संचारी हैं । जहाँ ऐसे विषयों में संशय बना रहे वहाँ सम्यकरूपेण रसचर्वण नही हो सकती। अभिनव गुप्त ने इन सातो का जो विस्तृत वर्णन किया है, उसका सारांश ही यहां विशद बनाकर लिखा गया है।