सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रख और मनोविज्ञान ९. अहंभाव-अहंमन्यता गर्व, अकड़, छाती तानना, जोर से बोलना, दूसरों के (Self-assertion) आत्मश्रेष्ठ का भाव प्रति आँखों से तुच्छता प्रदर्शन १०. संघवृत्ति-सामाज-प्रियता आत्मीयता, निकटता, सहवास का सुख, अकेलेपन की बेचैनी के ( Social or Gregarious) . अनुकपा, मिलनेच्छा शारीरिक व्यापार ११. भक्ष्यान्वेषण, भोजनोपार्जन तुधा, भूख अन्न खोजने का व्यापार (Food-seeking ) १२. अर्जुन, संचय, इक्ट्ठा करने की रुचि लोभ, स्वामी कहलाने की इच्छा, इस इच्छा या भावना के अनुकूल शारीरिक ( Acquisition) अधिकार, स्थापन व्यापार १३. नवनिर्माण ( Construction) ___कलाकार होने की भावना, कुशलता उसके लिए शरीर का व्यापार, का अभिमान काव्य-कला-निर्माण का उत्साह १४. हास्य ( Laughter) विनोद, मौज, प्रसन्नता मुँह चमकना, दंत-विकास होना, कंठ से शब्द निकलना। ये सब प्रवृत्तियाँ स्थायो भावो के भोर लायी जा सकती है। जैसे, शृङ्गार के अन्तर्गत ६, ४ और १० की प्रवृत्तियां आती हैं। ऐसे ही हास्य में ११ और १४ को, करुण में ५ और ८ को, रौद्र में २ को, वीर में १, ६ और १२ को, भयानक में १ की, अद्भुत में १३.और ७ को तथा वीभत्स में ३ को प्रवृत्तियां आती हैं। स्थायी मे ११वों प्रवृत्ति का कोई स्थान नही है। निवृत्ति-मूलक शान्ति में - महज प्रवृत्ति उदात्त स्वनिष्ठ श्रात्मभाव ( Elevated Ego-Instinct ) है। कोई-कोई १० को करुण में, ७, ८ और १० को भक्ति में तथा ४ को वात्सल्य में ले जाते है इनमें वैज्ञानिकों का कुछ मतभेद है । १५६