पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७६ काव्यदर्पण उहौपना गरदन मरोड़ना, भागना श्रादि अनुभाव; शंका, श्रम आदि व्यभिचारी और भय स्थायी भाव हैं । यह हुई काव्यगत सामग्री । यहाँ हरिण के लिए राजा भले ही आलंबन हों; पर रसिकों का पालंबन भयभीत हरिण ही है। उद्दीपन है राजा का पीछा करना। अनुभाव है-बाण लगने-न लगने की शारीरिक चेष्टा, कातर वचन आदि । संचारी हैं-शंका, चिन्ता, दैन्य आदि । इस प्रकार इसमें रसिकगत रस-सामग्री है । रस-प्रकरण के उदाहरणों में भी ऐसा ही समझना चाहिये ।