पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२८८

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२०२ कान्यदेपण अनुमित- अस्तुति करि न जाय भय माना । जगत पिता मैं सुन करि जाना ॥-तुलसी रामचन्द्र की अद्भुत बाललीला पर कौशल्य को यह उक्ति है। यहाँ अनुमित आश्चर्य को ध्वनि है। गीता के एकादशवें अध्याय में अर्जुन का विश्वरूप-दर्शन आश्चर्य हो का क्यों, महाश्चर्य का विषय है। बारहवीं छाया अद्भुत रस-सामग्री विचित्र वस्तु के देखने वा सुननने से जब आश्चर्य का परिपोष होता है तब अद्भुत रस को प्रतीति होती है। आलंबन विभाव-अद्भुत वस्तु तथा अलौकिक घटना आदि। उद्दीपन विभाव-आश्चर्यमय वस्तु को विलक्षणता तथा अलौकिक घटना को आकस्मिकता। अनुभाव-आँखे फाड़कर देखना, रोमांच, स्तम्भ, स्वेद, मुख पर उत्फुल्लता तथा घबड़ाहट के चिह्न आदि । ___ सचारी भाव --जड़ता, दैन्य, आवेग, शंका, चिन्ता, यितक, हर्ष, चपलता, औत्सुक्य आदि । स्थायी भाव-आश्चर्य। इहाँ उहाँ दुइ बालक वेला। मति भ्रम मोरि कि मान बिसेखा ।। देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँस दीन्ह मधुर मुसुकानी ।। -तुलसी काव्यगत रस-सामग्री-(१) राम बालंबन विभाव, (२) यहाँ-वहाँ एक रूप में बालक राम को देखना उद्दीपन विभाग, (३) भयमिश्रित हर्ष, शंका, वितर्क आदि संचारी भाव, (४) घबड़ाना, आँखें फाड़कर यहाँ-वहां देखना अनुभाव और (५) स्थायी भाव विस्मय हैं। रसिकगत रस-सामग्री-(१) कौशल्या आलंबन विभाव, (२) प्रभु-प्रभुता देखकर राम की मा का घबड़ाना उद्दीपन विभाव, (३) मुख पर विस्मय का भाव होना, रोमांच होना आदि अनुभाव, (४) हर्ष, भगवद्भक्ति प्रेम, वितर्क आदि संचारी भाव और (५) स्थायी भाव विस्मय वा पाश्चर्य है।