पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३१६

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बस्सल-रस-सामग्री पूरी उमंग हिलोरत होय के स्राव को कंधो लसै अवतार हैं। जाही सो भेंट सुधारस ले जनु सींचत मो सब देह अगार है ।। स० ना० यहाँ रामचन्द्र के कुश आलंबन विभाव हैं । उद्दीपन है बाल-स्वरूप, बोरता, 'श्रात्मा वै जायते पुत्र का निदर्शन। अनुभाव हैं आलिगन करना, तज्जन्य आनन्द का अनुभव करना। संचारी हैं आवेग, हर्ष, औत्सुक्य आदि । वास्सल्य- स्नेह स्थायी है। बरदत की पंगति कुन्दकली अधराधरपल्लव ( दोल) खोलन को । चपला चमकै धन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की। घुघरारि लटै लटके मुख ऊपर कुडल लोल कपोलन की। निवछावर प्रान करै 'तुलसी' बलि जाऊँ लला इन बोलन की। बाल रूप राम पालम्बन, घरारि लटें, बोलना आदि उद्दीपन, छवि का अवलोकन अनुभाव और हर्ष श्रादि संचारी भाव हैं। कवीन्द्र रवीन्द्र का एक पद्यांश है- आमी सुधु बले छिलाम-कदम गाछेर डाले पूर्णिमा चाँद अँटका पड़े जखन संध्या काले तखन की केऊ तारे घरे आनते पारे सुने दादा हंसे के ना बलले आमाय खोका तोर मतो आर देखी नाई तो बोका । मैंने केवल यही कहा था कि साँझ के समय पूर्णिमा का चाँद जब कदम की डालों में उलझ जाता है तब क्या कोई उसे पकड़ करके ला सकता है ? इसपर भैया ने हँसकर कहा कि रे बच्चा! तेरे ऐसा तो कोई अबोध और भोला-भाला नहीं दिखाई पड़ता। एक अँगरेज कवि का पद्यांश है- I have no name, I am but two days old'; 'What shall I call thee ?' 'I happy am, Joy is my name'. अभी मेरा नामकरण नहीं हुआ है । मैं अभी दो दिनों का बच्चा हूँ। फिर तुमको हम क्या कहकर पुकारें ? मैं मूर्तिमान उल्लास हूँ। मेरा नाम आनन्द है।