पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३३८

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काव्वदर्पण पड़ा सूखा काठ ठोकरें खाते - खिलाते पहर जाते आठ । ठेस देकर काठ कहता-सुनो लोगो और । यही फल भोगो, चलो या जमीं पर कर गौर ॥ काठ किसको काटता--मत चीखते जाओ। घर अगर जाना तुम्हें कुछ सीखने जाओ ॥ नया कर लो याद मत भूलो पुराना पाठ । पड़ा सूखा काठ॥ -जानकीवल्लभ शास्त्री ठेस देकर काठ का उपदेश देना जो मुख्य पद का वाच्यार्थ है उसका बाघ इसलिए है कि ठेस देने की प्रवृत्ति और उपदेश देने की क्षमता चेतनगत धर्म है, शुष्ककाष्ठगत नही। अतः, वाच्यार्थ का बोध हो जाने से लक्ष्यार्थ होता है कि काठ- साक्षर भी सदुपदेश देने का अधिकारी है। इससे व्यंग्यार्थ का बोध होता है कि संसार का कोई व्यक्ति तिरस्कार्य नहीं ; ठोकर खाकर यह समझ लो । यहाँ अत्यन्त तिरस्कृत-वाच्य ध्वनि है। आगे की पंक्ति से अपनो असावधानी से दुःख पाकर लोग व्यर्थ ही भाग्य को कोसा करते हैं । यह व्यग्यार्थ विवक्षितान्यपरवाच्यध्वनि का रूप खड़ा करता है । अतः ,यहाँ दो धनियां हुई-एक लक्षणामूला और दूसरी अभिधामला । और, उक्त पद्य में जो यह वाक्य है कि 'काठ किसको काटता' इसमें जो काठ शब्द है, वह अर्थान्तर-संक्रमित-वाच्यध्वनि द्वारा अपनेमें असमर्थता, निर्जीवता, उपेक्षणीयता आदि का बोध कराता है और तब जो 'मत चीखते जाश्रो' करता है उससे अपने ऐसे तुच्छ में भी अपमान होने पर प्रतिकार, समर्थता रूप व्यंग्य प्रकट करता है । इससे जो सारे व्यग्याथं का बोध होता है-वह यह कि 'समय पाकर एक तुच्छ पददलित भी अपना बदला सधा सकता है। एक तिनके को भी कमजोर न समझो। एक तिनका भी तुम्हें कुछ सबक सिखा सकता है-आदि। इस व्यायार्थ के बोध कराने में काठ की अर्थान्तर संक्रमित ध्वनि मुख्य है। पहले- वाली दो ध्वनियां अत्यन्त-तिरस्कृत-वाच्य और विवक्षितान्य-पर-वाच्य ध्वनियां सहायक होती हैं और तब उपयुक्त व्यंग्य प्रकट होता है। अतः, यह अनुग्राम अनुग्राहक का उदाहरण है। एकव्यंजकानुप्रवेश संकर जहाँ एक से अधिक ध्वनियाँ एक ही पद या वाक्य में होती हैं वहीं बहभेद होता है। . "मैं मीर मरी दुख की बबली .. तिन का कोई कोना, मेरा नामी अपना होना।