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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३४८

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काव्यदर्पण अभाव है। प्रसाद जी का 'उर्वशी' नामक और अक्षयवट जी का आत्मचरित चंपू नामक चंपू चंपू-काव्य के लावण्य रखते हैं; किन्तु चंपू के गुण कम । आधुनिक दृष्टि से अज्ञय का चिन्ता' नामक लिखा चंपू काव्य है। नाटक में गद्य-पद्य दोनों रहते हैं। किन्तु, उनको शैली संवाद-प्रधान होती है और इनकी वर्णन प्रधान । यही इनमें अन्तर है। दूसरी छाया काव्य के भेद ( नवीन) यह सत्य है कि साहित्यिक रचना की शैलियो की कोई सीमा नहीं बांधी जा सकती और न भेदोपभेदों के निर्देश से वह संकुचित ही हो जा सकती है, तथापि उनके अन्तान के लिए उनके भेदोपभेद आवश्यक हैं। प्राच्य श्राचार्यों ने उतने भेद नहीं किये हैं जितने कि पाश्चात्यों ने । यह वर्गीकरण तब तक शिथिल नहीं हो सकता जब तक भाषा की सजीवता तथा नव-नव प्राण-संचार के प्रयत्न शिथिल नहीं हो सकते। हिन्दी-जैसो बद्ध नशील तथा विकासशील भाषा के लिए यह असंभव है । कुछ भेदों का हो यहाँ निर्देश किया जाता है । नवीन विचारों को दृष्टि से काव्य के निम्नलिखित भेद किये जाते हैं। क्वीन्द्र रवीन्द्र ने लिखा है-“साधारणतः काव्य के दो विभाग किये जा सकते हैं। एक तो वह जिसमें केवल कवि की बात होती है और दूसरी वह जिसमें किसी बड़े सम्प्रदाय वा समाज की बात होती है।" "कवि की बात का तात्पर्य उसको सामर्थ्य से है, जिसमें उसके सुख-दुख, उसकी कल्पना और उसके जीवन की अभिज्ञता के अन्दर से संसार के बारे मनुष्यों के चिरन्तन हृदयावेग और जीवन को मार्मिक बातें आप-ही-श्राप प्रतिध्वनित हो उठती हैं। "दूसरी श्रेणी के कवि वे है, जिनकी रचना के अन्तस्तल से एक सारा देश, एक सारा युग, अपने हृदय को, अपनी अभिज्ञता को प्रकट करके उस रचना को सदा के लिए समादरणीय सामग्री बना देता है। इस दूसरी श्रेणी के कवि हो महाकवि कहे जाते हैं। मनोवृत्तियों और विषयों के आधार पर डाक्टर श्यामसुन्दर दास ने काव्य केनिम्नलिखित ये तीन भेद किये है-“पहला भेद है, आत्माभिव्यञ्जन-सम्बन्धी साहित्य, अर्थात् अपनी बीती या अपनी अनुभूत बातों का वर्णन, आत्मचिन्तन प्राधात्मनिवेदन-विषयक हृदयोद्गार । ऐसे शास्त्र, ग्रन्थ या प्रबन्ध जो स्वानुभव