२७४ काव्यदपण किरणों से शिशिर-कणों का सूखना और जगत में नवजीवन का जाग्रत होना स्वाभाविक है। भावार्थ यह कि कवि अपने दुख में रोकर संसार को सम्वेदनशील बनाता है और उससे सहानुभूति पाता है । इस प्रकार उसका रोना व्यर्थ नहीं जाता। परमात्मा की करुण पुकार के प्रतिफल का कैसा चमत्कारक चित्र है! चित्र-व्यंजना-शैली में भाववाचक संज्ञा का अमृतं भावनाओं का चित्रण अत्यन्त कठिन है । यह आधुनिक काव्य-कला-कौशल का अपूर्व महत्त्वपूर्ण अंग है। अरूप का रूप-चित्र सहज-साध्य नहीं। विषयों को अपनी कल्पना का नूतन और विस्तृत क्षेत्र बनाकर चित्र-व्यंजना-शैली में आधुनिक प्रतिभाशाली कवियों ने ऐसे अपनी प्रतिभा को पराकाष्ठा का प्रदर्शन किया है। सौन्दयं का एक सुन्दर चित्र देखिये- तुम कनक-किरन के अन्तराल में लुक-छिप कर चलते हो क्यों ? नतमस्तक गर्व वहन करते यौवन के धन रस कन ढरते- हे लाज भरे सौदर्य बता वो मौन बने रहते हो क्यों ? अधरों के मधुर कगारों में कल-कल ध्वनि के गुजारों में मधु सरिता-सी यह हँसी तरल अपनी पीते रहते हो क्यों ?-प्रसाद एक तो किरणे ही सुनहलो, फिर वे कनक की! सौन्दर्य को खान ! उन विश्वव्यापी सुनहली किरणों के अन्तराल में सौन्दर्य का लुक-छिपकर चलना कोमल भावना का कैसा सुनहरा चित्र है ! यौवन का सौन्दयं कुछ निराला ही होता है, उसको गर्व होना सहज है । पर सौन्दर्य में औद्धत्य नही। नतमस्तक होने से उसमें सुकुमारता है। सौन्दय का 'लाज भरे' विशेषण से तो सौन्दर्य की महिमानत मृदुल मंजु मूर्ति आंखों में घर कर लेती है। मधुर अधरों को सरल- तरल हँगी तो मुख पर खुल खिलने की ही वस्तु है। एक स्वप्न का सुन्दर चित्र देखिये- किन कर्मों की जीवित छाया उस निद्रित विस्मृति के संग, भांखमिचौनी खेल रही वह किन भावों का गूढ़ उमंग ? मदे नयन पलकों के भीतर किस रहस्य का सुखमय चित्र गुप्त वंचना के मावक कर खींच रहे सखि स्वप्न विचित्र ।-पंत प्रसाद, पंत-जैसे कुछ आधुनिक कवियों ने अपनी अनल्प कल्पना के बल मानवीकरण करके अमृत भावों को सुन्दर रूप प्रदान किये हैं।
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