सातवीं छाया आख्यायिका आख्यायिका को ही कथा, कहानी और गल्प भी कहते हैं। जब बढ़ते हुए सांसारिक जंजालों ने मानव-जीवन को अपने जाल में जकड़ -. लिया तब मनुष्य को अपने मन को भूख बुझाने के लिए अवकाश का अभाव-सा हो गया। वह बड़े-बड़े उपन्यास पढ़ नहीं सकता था, रात-रात भर नाटक देख नही सकता था। पर उसका मनोरंजन आवश्यक था, मस्तिष्क को विश्राम देना चाहिये हो। नहीं तो उसमें सांसारिक झंझटों के साथ जूझने को ताजगी श्रावेगी कहाँ से? यही कारण है कि छोटी-छोटी कहानियो का अवतार हुश्रा । ये साहित्यिक और कलात्मक कहानियाँ ग्राम्य कहानियों का ही संशोधित और विकसित रूप हैं। इनका आधार कोई भी विषय वा घटना हो सकती है। मानव-जीवन से संबंध रखनेवाली कोई भी बात कहानी का मूलाधार हो सकती है। ____ कहानी का प्रधान उद्देश्य है मनोरंजन । यदि उससे कुछ और लाभ हो जाव तो वह गौण है । मनोरंजन के साथ यदि कोई कहानी मानव-चरित्र को लेकर कोई आदर्श उपस्थित कर दे तो उसका सौभाग्य है । यदि कहानी में जीवन हो, यथार्थता हो, मनोविज्ञान का पुट हो, जागृति उत्पन्न करने की शक्ति हो, शैली में आकर्षण हो, सरसता और सरलता हो, सजीव पात्र हो, कथोपकथन सजीव और स्वाभाविक हो, अच्छा चरित्र-चित्रण हो, कला का विकास हो, तो वह पाठकों पर मनोरंजकता के साथ अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहेगी। कहानी में ऐसी स्थापना ( Setting ) होनी चाहिए, जिसमें कथा की मुख्य घटना से संबंध रखनेवाली सारी बातें आ जायें। इने-गिने पात्रों हो से अभिलषित बातों का सजीव, स्पष्ट और सच्चा चित्रण हो जाय। भाषा में धारावाहिकता और लोच-लचक होना चाहिये। उसमें मस्तिष्क को उलझानेवाले गूढ़ और जटिल विचार वर्जित हैं। • कहानी के मुख्य तीन अंग हैं-१ उद्देश्य, २ साधन और ३ परिणाम । कहानी का एक ही उद्देश्य हो और श्रादि से अन्त तक उसका एक-सा निर्वाह होना चाहिए। उद्देश्य के अनुरूप ही घटनाओं का यथायथ चित्रण होना आवश्यक है। जिस उद्देश्य को लेकर कहानो का प्रारम्भ हो, उसका यथोचित विकास करना ही साधन है और सफल पूर्ति उसका परिणाम है। इन्हीं तीनों के सामञ्जस्य से कहानो सार्थक तथा सफल हो सकती है।
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