पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३७७

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२६४ काव्यदर्पण नाटकों को नागरिको के मनोरंजन को अनुपयुक्तता। एकांको अभिनयोपयोगी न भी हुआ तो कहानो-सा पढ़कर उससे आनन्द उठाया जा सकता है। एकांकी अपने आपमें संपूर्ण होता है। उसको अपनी सत्ता और महत्ता है। उसका अपना प्राण है, जिसको अभिव्यञ्जना का उसका अपना निराला ढंग है। वह किसीके आश्रित नहीं। कुशल कलाकार कोई भी कहानी, घटना, प्रसंग, जीवन की समस्या श्रादि को लेकर उसे ऐसा सजीव बना देता है जो सीधे हृदय पर जाकर चोट करता है। एकांकी नाटक की कथावस्तु एक ही निश्चित लक्ष्य को लेकर चलती है । उसमें अवान्तर प्रसंग न आने चाहिए। पस्थिति, घटना, चरित्र आदि के विकास में संयम को आवश्यकता है। किसी प्रकार की शिथिलता अवांछनीय है। अभिव्यक्ति मैं भावुकता की, अर्थ को, वास्तविकता को और मानसिक स्थिति को विशेषता होनी चाहिए। पात्रों का वातीलाप यों ही लिख देने से एकांको नाटक नहीं हो सकता। एकांकी को सबसे बड़ी बात है चिन्ता-राशि की समृद्धता । एकांको एक दृश्य मे भी समाप्त हो सकता है और उसमें अनेक दृश्य भी हो सकते है। आधुनिक एकांकी नाटको में अभिनय-संकेतो ( Stage Direction ) को प्रधानता देखने में आती है। हिन्दी में स्वतन्त्र रूप से गोति-नाट्य नहीं लिखे गये हैं। 'तारा' बंगला से अनूदित अतुकान्त गीति-नाट्य है । छन्दोबद्ध वार्ता नाप लिख देने से हो कोई रचना गीतिनाट्य की श्रेणी में नहीं आ सकती। उनके कथन में लय भी होना चाहिए औट स्वर का प्रारोहावरोह भी। उनका जोरदार होना तो अत्यावश्यक है हो। बँगला-स्टेज पर इनका अच्छा प्रदशन होता है। अपना स्टेज न होने पर भी हिन्दी में 'कृष्णार्जुन-युद्ध'-जैसे गोति-नाट्य लिखे जाये तो उसका सौभाग्य है। उसमें अहोन्द्र चौधरी का जिन्होंने अभिनय देखा है, वे गौति-नाट्य को उपयोगिता और महत्ता को समझ सकते हैं। हिन्दी में भावनाट्य के भी दर्शन होने लगे हैं। उदयशंकर भट्ट इसके सुप्रसिद्ध कलाकार हैं । उन्होंने 'मत्स्यगन्धा', 'विश्वामित्र' और 'राधा' नामक तीन भावनाट्य लिखे हैं। छन्दोबद्ध होने से कुछ लोग इन्हें गोति-नाट्य हो कहते हैं ; पर हैं वे भावनाट्य ही। लेखक का ऐसा ही विचार है। उनके मत से भावनाट्य का लक्षण है-"संकेतमय एवं स्पष्ट भावविलास, परिस्थिति से उत्पन्न एकान्त मानस-उद्रेक, पल-पल में कल्पना के सहारे अनुभूति को प्रौढ़ता'। यह जिसमें हो, वह भावनाट्य है। जिस नाटक में एक ही पात्र बोलता है उसे अँगरेजी में 'मोनोड्रामा' कहते हैं। संस्कृत में 'आकाशभाषित' नाम से नाटक का एक प्रकार है। उसमें एक ही पात्र