पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३७६

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एकांकी २६३ जो दो-चार लिखे गये थे। प्रसाद के नाटक हो मौलिक रूप से साहित्यिक महत्व को लेकर हिन्दी में अवतीर्ण हुए। वर्तमान हिन्दी-नाट्य-साहित्य पौरस्त्य और पाश्चात्य प्रभावों से प्रभावित है। निम्नरूप में इनका वर्गीकरण हो सकता है। १ सांस्कृतिक चेतना के नाटक-चन्द्रगुप्त, अजातशत्रु, पुण्य पर्व श्रादि हैं। २ नैतिक चेतना के नाटक-रक्षाबधन, प्रतिशोध, राजमुकुट आदि हैं । इनमें राजकीय नैतिकता है । कृष्णार्जुनयुद्ध, सागर-विजय आदि में पौराणिक नैतिकता है । इस प्रकार इनमें नैतिक चेतना है । ३ समस्या-नाटक के दो प्रकार हैं-व्यक्ति को समस्या और सामाजिक तथा राजनीतिक समस्या । पहले में सिन्दूर को होलो, दुविधा, कमला, छाया आदि हैं और दूसरे में सेवापथ, स्पर्धा, स्वर्ग को झलक आदि है। ४ रूपक के रूप में जो नाटक होता है उसे नाट्य-रूपक कहते हैं। इसमें 'प्रबोध चन्द्रोदय' संस्कृत और हिन्दी दोनों में प्रसिद्ध है। मौलिक रूप में प्रसादजी को 'कामना' ने अपना नाम खूब कमाया। 'ज्योत्स्ना' आदि अन्य भी एक-दो नाट्य-रूपक है। ५ गीति-नाट्य में अनघ, तारा, राजा आदि की गणना होती है। पर, इनमें भाव की भी प्रधानता है। इन्हें गीति-नाट्य कहने का आधार इनको पद्यबद्धता ६ भाव-नाट्य में भाव की प्रधानता रहती है। इसमें अन्तःपुर का छिद्र, अम्बा आदि की गणना होती है । इन उपयुक्त उद्देश्यमूलक विभागों के अतिरिक्त सामाजिक, ऐतिहासिक. पौराणिक, राजनीतिक, समस्यामूलक, भावात्मक आदि नामों से भी आधुनिक नाटकों का विभाग किया जाता है। स्टेज पर मूक अभिनव का विभिन्न प्रदर्शन होने लगा है। सोलहवीं छाया एकांकी उपन्यासों को प्रतिक्रिया जैसे कहानियां हैं, वैसे ही नाटकों को प्रतिक्रिया एकांकी नाटक हैं। पुरानो प्रचलित परिपाटी को तोड़-फोड़कर ही इनका निर्माण हुआ है। आजकल हिन्दी-साहित्य में एकाको रूपकों को बाढ़ सी आ गयी है । इसका कारण है समय की प्रगति और कला की दृष्टि से पुराने ढंग के बड़े-बड़े