पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३८८

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शब्द-दोष अथवा प्रथम ऋतुकाल का प्रदोष आज कानन कुमारियाँ चलीं द्रुत बहलाने को। खोलती पटल प्रतिपटल अधीरता से अटल उरोज अनुराग दिखलाने को। इसमें जो 'उरोज' शब्द है उसके दो अर्थ हैं-'स्तन' और 'हृदयगत' । पर दोनों अर्थों में अप्रसिद्ध दूसरे अर्थ में इसका प्रयोग किया गया है। वह निहितार्थ है । वह अनेकार्थ शब्दों में होता है । टिप्पणी-अप्रयुक्त दोष प्रयोगाभाव से और निहितार्थ विरलप्रयोग के कारण दूषित होता है। असमर्थ में अर्थ को प्रतीति नहीं होती और निहितार्थ में देर से प्रतीति होती है । श्लेष और यमक आदि अलंकारों में ये दोनों दोष नहीं माने जाते । ६. अनुचितार्थ-जहां प्रयुक्त पद से प्रतिपाद्य अर्थ का तिरस्कार हो वहाँ यह दोष होता है। ___ पलंग से पलना पर घाल के जननि आनन-इन्दु बिलोकती अर्थ है-माता बच्चे को पलँग से उठाकर और पलने पर रखकर उसका मुख-चन्द्र देखती है। यहां 'घाल के' का अर्थ भले ही कहीं पर रखना होता हो; पर उसका अर्थ 'मार कर' प्रसिद्ध है। जैसे 'रे कुल-घालक' । इससे माता के स्नेह में हीनता का द्योतन होता है। भारत के नवयुवकगण रख उद्देश्य महान। होते हैं जन-युद्ध में बलि पशु से बलिदान ॥-राम भारत के उत्साही वीर युवकों को बलि-पशु की उपमा देना उनको कातर- हीन बनाना है; क्योंकि वे उत्साह से स्वेच्छा-पूर्वेक, स्वातंत्र्य-युद्ध में प्राण-त्य ग करते हैं और यज्ञ के पशु परवश होकर मरते है। यहाँ अभीष्ट अर्थ के तिरस्कार से अनुचितार्थ दोष है। ____७. निरर्थक-पाद-पूर्ति के लिए या छन्द-सिद्धि के अनावश्यक पदों के प्रयोग में यह दोष होता है। (क) किये चला जा रहा निदारुण यह लय नर्तन । (ख) दास बनने का बहाना किस लिये ! क्या मुझे दासी कहाना इसलिये देव होकर तुम सदा मेरे रहो; और देवी ही मुझे रक्खो अहो ! 'निदारुण' में 'नि' केवल पदपूर्ति और 'अहो' केवल छंद की अनुप्राससिद्धि के लिए ही आये है। का० द.-२५