३२२ काव्यदर्पण ऐसे ही अनेक प्रकार के वर्णन-दोष हो सकते हैं। बद्यपि वर्णन के दोष का पद, पदांश, वाक्य, अर्थ, रन आदि के दोषों में अन्तर्भाव हो जाता है तथापि वर्णन के कुछ दोषों का पृथक् निर्देशन, इनकी विशेषता के कारण, कर दिया गया है। पाँचवीं छाया अभिधा के साथ बलात्कार अाज हिन्दी का सर्जक-समुदाय केवल कवि ही नहीं लेखक भी-अपने को सब विषयों में सर्वथा स्वतन्त्र ही समझता है। ____ यह स्वतन्त्रता सर्वत्र देखी जाती है-विशेषतः शब्दों के अंग-भंग करने में और शब्दों के निर्माण में । शब्दों के यथेच्छ अर्थ करने में तो यह सीमा पार कर गयो है । कुछ उदाहरण ये हैं- अजान और अनजान अज्ञात वा अज्ञानी हो के अर्थ में प्रयुक्त होते है; कितु इनका इन्नोसेंट (innocent) के अर्थ में-निर्मल, निश्छल, निर्दोष, सरल, भोला- भाला आदि अर्थ में प्रयोग करना इन्हें मनमाना अर्थ पहनाना है। (क) ही था उसका मन निरालापन था आभूषण कान से मिले अजान नयन सहज था सजा सजीला तन। (ख) नवल कलियों में वह मुसकान खिलेगी फिर अनजान । अजान, अनजान शब्द भले ही कोमल हों पर यहाँ अभीष्ट अर्थ कदापि नहीं देते। अभ्यर्थना का सीधा-सा अर्थ है, याचना करना, कुछ माँगना । बंगला में यह समादर देने, स्वागत-सत्कार करने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । उसोके अनुकरण पर हिन्दी में भी यह स्वागत के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा है। जैसे उनकी अभ्यर्थना के लिए स्टेशन चलिये। हिन्दी में ऐसी अन्धाधुन्ध ठीक नहीं। ऐसा ही वाधित शब्द है। वाधित का अर्थ है-पीड़ित, प्रतिबन्ध-ग्रस्त, तंग किया गया, सताया गया आदि । अब बँगला को देखा-देखी अनुग्रहीत, उपकृत, कृतज्ञ आदि के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा है। जैसे, पत्रोत्तर देकर मुझे वाधित कीजियेगा। संभ्रम शब्द एक प्रकार के आवेग से मिश्रित सम्मान का बोधक है। इससे । बना संभ्रान्त विशेषण सहम गये हुए या चकपकाये हुए व्यक्ति के लिए प्रयुक्त , झेना चाहिये । पर बँगला की देखा-देखी सम्मानित वा प्रतिष्ठित व्यक्ति के अर्थ में . हिन्दी में भी प्रयुक्त होने लगा है जो ठीक नहीं।
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