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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४३०

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कावण फणिनी-सर्पिणी और दामिनी दोनों का धर्म कुटिल गति है और इन दोनों का अातंक एक-सा प्रभावपूर्ण है। विमाता बन गयी आंधी भयावह, हुआ चंचल न फिर भी श्यामधन वह । पिता को देख तापित भूमितल सा, बरसने लग गया वह वाक्य जल-सा । -सा. यहाँ के अलंकार की योजना साधयं के बल पर हो की गयी है । महाराज दशरथ के लिए इसका प्रभाव भी असाधारण है। जिस उपमेय के लिए उपमान या प्रकृत के लिए अप्रकृत अथवा अप्रस्तुत के लिए प्रस्तुत की योजना को जाय उसमें सादृश्य का होना आवश्यक हैं। सादृश्य ही नहीं ; यह भी देखना आवश्यक है कि जिस वस्तु, व्यापार और गुणं के सहश जो वस्तु, व्यापार और गुण लाया जाता है वह उस भाव के अनुकूल हैं कि नहीं। उससे कवि जैसा रसात्मक अनुभव करे वैसा ही श्रोता भी भावों को रसात्मकम अनुभूति करे । अप्रस्तुत भी उसी प्रकर भावों का उत्तेजक हो जैसा कि प्रस्तुत। सखि ! भिखारिणी सी तुम पथ पर फैलाकर अपना अंचल सूखे पत्तों ही को पा क्या प्रमुक्ति रहती हो प्रतिपल ?-पंत भिखारिणी जैसे रूखा सूखा पाकर हो सदा प्रसन्न रहती है वैसे हो सूखे पत्ते पाकर ही छाया भी क्या प्रमुदित रहती है ? यहाँ का सदृश्य एक-सा भावोत्तेजक है। कभी-कभी कवि सादृश्य लाने में-अप्रस्तुत को योजना में समामता की उपेक्षा कर देते हैं, जिससे रसानुभूति में व्याघात पहुंचता है । जैसे- अचानक यह स्याही का बूद लेखनी से गिर कर सुकुमार। गोल तारा सा नभ से कूद सजनि आया है मेरे पास ।-पंत गोलाई का सादृश्य रहने पर भी तारा और बूंद को समता कैसी ! नभ से कूदकर आया है तो उसका प्रायः वही आकार-प्रकार होना चाहिये। यह बात ध्यान रखने की है कि किसी बात की न्यूनता या अधिकता दिखाने में ही कवि-कर्म की इतिश्री नहीं समझनी चाहिये। कहीं-कहीं प्राचीन कवियों ने भी सादृश्य और सांधयं को बड़ी उपेक्षा की है। हरि कर राजत माखन रोटी। मनी बराह भूधर सह पृथिवी धरी दर्शनन की कोटीं।-सूर उत्पेक्षा को पराकाष्ठा है पर सादृश्य की मिट्टों पलौंद है। आधुनिक कवि प्रभाव-साम्य के समक्ष सादृश्य और साप की अधिकतर उपेदी करते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि प्रभाव-समन्य को लेकर को गयो प्रस्तुत योजना हृदयग्राही होती है। वैसे- जल उठा स्नेह दीपक-सा नवनास हव्य या मेरा। अवशेष यम-रेखा से चित्रित कर रहा अंधेरा। प्रसाद