३५२ कागदपंप इसकै रूपक के रूप में अप्रस्तुत-योजना चिन्ता को प्रारम्भिक अवस्था की भीषणता का अनुभव कराने में अत्यन्त सायक है। (ग) क्रिया के अनुभव को तीव्र करने में सहायक अलंकार- उषा सुनहले तीर बरसती जयलक्ष्मी-सी उदित हुई। उधर पराजित कालरात्रि भी जल में अन्तनिहित हुई।-प्रसाद यहाँ के रूपक और उपमा ऊषा के उदय की तीव्रता का अनुभव कराने में सहायक हैं। सुनहरे तौरों के सामने भला कालरात्रि को विसात ही क्या, भागकर छिप हो तो गयो! मिला भी कुछ लजाकर हँस पड़ी, वह हंसी थी मोतियों को सी लड़ी। X x + दम्पती चौके, पवन मण्डल हिला, चंचला सी छिटक छटी ऊमिला। ____ मोतियों को लड़ी-सी जो उपमा है वह हसने की क्रिया को जैसे तीव्रता प्रदान करती है वैसे ही उज्जवलता, दिव्यता और सुन्दरता की अनुभूति की भो वृद्धि करती है। लक्ष्मण के क्रोड़ से अर्मिला के छिटक छटने की क्रिया में जो तीव्रता है उसको भी चंचला की उपमा तीव्रतर कर देती है। कुछ खुले मुख की सुषमामयी, यह हँसी जननी ममरंजिनी। । लसित यों मुखमंडल पै रही, विकच पंकज ऊपर ज्यों कला ।-उपा० यहाँ को उपमा मुख-सौन्दर्य के अनुभव को तीव्र कर रही है। बाल रजनी-सी अलक थी डोलती भ्रमित सी शशि के बदन के बीच में। अचल रेखांकित कभी भी कर रही प्रमुखता मुख की सुछवि की काव्य में। -पंत यहाँ अलक के डोलने की क्रिया को रेखांकित को उत्प्रेक्षा काव्यसम्पत्ति के साथ अत्यन्त तीव्र कर रही है। कामिहि नारि पियारि जिमि लोभिहिं प्रिय जिमि दाम । तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि राम। तुलसी पूर्वाद्ध को दोनों उपमाएँ राम के प्रिय लगने के अनुभव को तोब बना जहाँ अलंकार इन कार्यों को करने में समर्थ हो वहीं उनकी सार्थकता है। स्वभावतः रचना में जहाँ अलंकार फूट पड़ते हैं वहीं उनका सौन्दर्य निखर आता है और जहाँ उनमें कृत्रिमता प्रायी कहाँ वे अपना स्वारस्व खो देते हैं, क्योंकि उनमें खोकर्षता महार जाती।
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