(२) विरोधमूल में १२ अलंकार है-विरोध, विभावना, विशेषोक्ति, सम, विचित्र, अधिक, अन्योन्य, विशेष, व्याघात, अतिशयोक्ति (कार्यकारण-पौर्वापर्य) असंगति और विषम। (३) शृङ्खलाबद्ध में ४ अलंकार हैं—कारणमाला, एकावली, मालादीपक और सार। (४) तर्कन्यायमूल में २ अलंकार है-काव्यलिग और अनुमान । (५) वाक्यन्यायमूल में ८ अलकार हैं-यथासंख्य, पर्याय, परिवृत्ति, परिसंख्या, अर्थापत्ति, विकल्प, समुच्चय और समाधि ।। (६) लोकन्यायमूल में ८ अलंकार है-प्रत्यनीक, प्रतीप, मोलित, सामान्य, तद्गुण, अतद्गुण, उत्तर, प्रश्नोत्तर । (७) गूढार्थप्रतीतिमूल में ७ अलंकार हैं-सूक्ष्म, व्याजोक्ति, वक्रोक्रि, स्वभावोक्ति, भाविक, संसृष्टि और संकर। विद्यानाथ ने अलकारों को नौ भागों में विभक्त किया है। वे हैं- साधर्म्यमूल, अध्यवसायमूल, विरोधमूल, न्यायमूल, लोकव्यवहारमूल, तकन्यायमूल, शृङ्खलावैचित्र्यमूल, अपह्नवमूल और विशेषणवैचित्र्यमूल । इन वर्गीकरणों में प्राचार्यों का मतभेद है। कारण यह कि उनका दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न है। किन्तु, इसमें सन्देह नहीं कि वह वर्गीकरण वैज्ञानिक है ; क्योंकि इनमें एकसूत्रता है। विशुद्ध मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण हो सकता है, पर वह काव्य में विशेषतः सहायक न होने के कारण उपेक्षणीय नहीं तो आवश्यक भी नहीं है। नवी छाया अलंकार और मनोविज्ञान अधिकांश अलंकार मनोविज्ञान पर निर्भर करते हैं। क्योंकि, वे रस-भाव के सहायक हैं ; उनके प्रभावोत्पादन में समर्थ हैं। रसभाव का मन से गहरा सम्बन्ध है। रस और मनोविज्ञान' शीर्षक में इसका विवेचन हो चुका है। अलंकार का जो वर्गीकरण किया गया है उसमें मनोवैज्ञानिक आधार विद्यमान है, चाहे उसमें मतभेद हो या यथार्थता की कुछ कमी हो। ____ मनुष्य स्वभावतः सौन्दर्यप्रिय होता है। यह सौन्दर्यप्रियता शिशुकाल से ही लक्षित होती है। बच्चे रंगदार चीजों को झपटकर उठा लेते हैं। रंगीन चटक- मटक के खिलौने को छोड़ना ही नही चाहते । बालक रंगदार कपड़े पहनना पसन्द करते हैं। किशोरों, तरुणों और युवकों की तो कोई बात न पूछिये । उनका तो घर-कमरा, कपड़ा-लचा, खान-पान, यान-वाहन सब कुछ सुन्दर चाहिये । पढ़ने-
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