पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४४७

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३६६ काव्यदर्पण इसके अनेक भेद होते हैं-१ सर्वान्त्य सवैया में होता है, २ समान्त्य-विष- मान्त्य, सोरठा के पहले, तीसरे और दूसरे-चौथे चरणों में होता है, ३ समान्त्य समान चरणों में होता है, ४ विषमान्त्य विषम चरणों में होता है, ५ समविषमान्त्य चौपाई में होता है, और ६ भिन्न तुकान्त में तुक की परवाह नहीं की जातो। सारा प्रिय-प्रवास भिन्न तुकान्त वा भिन्नान्त्य या अतुकान्त हो है । नवीन कवि अनुप्रास वा तुक को अपने लिए बन्धन समझते हैं। उदाहरण सर्वत्र उपलब्ध हैं। २ यमक जहाँ निरर्थक वर्णों वा भिन्नार्थक सार्थक वर्णों को पुनरावृत्ति हो वा उनकी पुनः श्रुति हो वहाँ यमक अलंकार होता है। १ अनुराग के रंगनि रूप तरंगनि अंगनि मोद मनो उफनी । कवि 'देव' हिय सियरानी सबै सियरानी को देख सोहागसनी। वर धामिनी वाम चढ़ी बरसै मुसुकानि सुधा घनसार घनी । सखिआन के आनन इन्दुनतें अँखियान ते बन्दनवार बनी। इसमें एक 'सियरानी' का अर्थ सकुचा गयीं और दूसरी 'सियरानी' का अर्थ 'सौता रानी' है । एक आकार के शब्द है पर अर्थ भिन्न है । 'रंगनि' और 'तरंगनि' में रंगनि' एक-सा है पर 'तरंगनि' का रंगनि' निरर्थक है। 'सखियान' और 'अँखियान' में 'खयान' निरर्थक हैं। २ चतुर है चतुरानन सा वही सुभग-भाग्य-विभूषित माल है। सुन जिसे मन में पर काव्य की रुचिरता चिरतापकरी न हो।-उपा० वहाँ 'रुचिरता' तथा 'चिरताप' में से 'चिरता' को अलग करने से कोई अर्थ नहीं होता। ३ मर मिटें, रण में पर राम को हम न दे सकते जनकात्मजा । ___ सुन कॅपे जग में बस वीर के सुयश का रण कारण मुख्य है।-उपा० इसमें 'का' 'रण 'कारण' सभी सार्थक है। ४ जग जाँचिये को उन जाँचिये जो जिय जॉचिये जानकी जानहि रे ? जेहि जाँचत जाचकता जरि जाय जो जारति जोर जहानहि रे ।-तु० यहाँ जाँचिये का भिन्नार्थ नहीं है, फिर भी प्रसंगवाह्य न होने से इनको यमक कहने में कुण्ठा का अवसर नहीं। च, ज के उच्चारण का एक स्थान से होने से व त्यानुप्रास भी है। पदावृत्ति और भागावृत्ति इसके दो मुख्य भेद होते हैं। जहां पूरे पाद की-

  • आधुचि हो वहां पादांवृत्ति और जहाँ पाद के अधे, तीसरे या चौथे भाग को