पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्यदर्पण मालोपमा जहाँ एक उपमेय के अनेक उपमान कहे जायँ वहाँ मालोपमा होती है। इसके तीन भेद हैं- (क) समानधर्मा-जहां अनेक उपमानों का एक ही धर्म उक्त हो । १ हृदय-मन्मथ सौख्य से इलथ बिसुध गृह आज मैं री, छहरता सा चल तरल जल लहर सा तन मन तरंगित ।-भट्ट इसमें तरंगित तन-मन के लिए दो उपमान कहे गये हैं। १ उनमें क्या था, श्वास मात्र ही था बस पाता जाता। ललित तंत्र सा, चलित यंत्र सा, फलित मंत्र सा भाता।-गुप्त इसमें साँस के आने-जाने के तीन उपमान दिये गये हैं। ३ पछतावे की परछाँही सी तुम भूपर छायी हो कौन ? दुर्बलता सी अंगड़ाई सी अपराधी सी भय से मौन ।-पन्त यहां छाया के चार उपमान धर्म के कहे गये हैं। ४ कुंद सी कविंद सी कुमुद सी कपूरिका सी कंजन की कलिका कलप तरु केलि सी। चपला सी चक्र सी चमर सी और चन्दन सी, चन्द्रमा सी चाँदनी सी, चाँदी सी चमेली सी।-हनुमान राम-सुयश उपमेय के लिए एक साथ अनेक उपमान दिये गये हैं, जिन्होने माला का सचमुच श्राकार धारण कर लिया है। (ख) भिन्नधर्मा मालोपमा-जिसमें भिन्न-भिन्न धर्म के उपमान हों। १ मरत कोटि शख विपुल बल रवि सत कोटि प्रकाश । ससि सत कोटि सो सीतल समन सकल भवत्रास । काल कोटि सत सरिस अति दुस्तर दुर्ग तुरंत । धूमकेतु सत कोटि सम दुराधरख भगवंत । तुलसी इसमें राम उपमेय के भिन्न-भिन्न उपमान मरुत, रवि श्रादि के विपुल बल, कोटि प्रकास आदि भिन्न-भिन्न धर्म कहे गये हैं। २ धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश मधुर मुरली सी फिर भी कौन किसी अज्ञात विश्व की विकल वेदना दूती सी तुम कौन ?-प्रसाद यहाँ तुम उपमेय को भिन्न-भिन्न धर्मवाली प्रार्थना, मुरली और वेदना की उपमाएँ दी गयी हैं। (ग) लुप्तधर्मा मालोपमा-जिसमें समान धर्म का कथन न हो। ..', इन्द्र जिमि जंभ पर, बाड़व सुअंभ पर रावन सदंभ पर रघुकुल राज हैं।