३६२ काव्यदर्पद किसी के कान्तिहीन, मलीन और नम्रनुखी होने को उत्प्रेवा का कारण यह घटिका हो सकती है। २ असिद्धविषया- मोर मुकुट की चन्द्रिकनि यों राजत नंदनंद । मनु ससि सेखर को अकस किय सेखर सत चन्द ।-बिहारी इसमें शेखर शतचन्द का जो कारण शशि-शेखर की प्रतिद्वन्द्विता में कहा गया है, वह प्रसिद्ध है। फलोत्प्रेक्षा जहाँ अफल में फल की संभावना की जाय, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है। हेतूत्प्रेक्षा के समान इसके भी दो भेद होते हैं। १ सिद्धविषया फलोत्प्रेक्षा- क्या लोक-निद्रा भंग कर यह वाक्य कुक्कुट ने कहा। जागो, उठो, देखो कि नभ मुक्तावली बरसा रहा। तमचर उलूकादिक छिपे जो गर्जते थे रात में, पाकर अंधेरा ही अषम जन घूमते हैं घात में। गुप्त सबेरा होने पर सब कोई जाग हो जाते हैं, यह विषय-सिद्ध है। कुक्कुट के बोलने में जगाना रूप फल की जो उत्प्रेक्षा की गयो है वह सिद्धविषया फलोत्प्रेक्षा है । २ असिद्धविषया फलोत्प्रेक्षा- नाना सरोवर खिले नव पंकजों को ले अंक में बिहँसते मन मोहते थे। मानो पसार अपने शतशः करों को वे माँगते शरद से सुविभूतियां थे। हरिऔष यहां सुविभूतियां मांगना रूप फल के लिए सरोवर का नव पंकज रूप कर पैलाना विषय प्रसिद्ध है। प्रतीयमाना उत्प्रेक्षा कह आये है कि जहाँ वाचक शब्द न हो वहाँ प्रतीयमाना उत्प्रेक्षा होती है। १ प्रतीयमाना हेतू प्रेक्षा यह थी एक विशाल मोतियों को लड़ी। स्वर्ग-कंठ से छट धरा पर गिर पड़ी। सह न सकी भवताप अचानक गल मयो; हिम होकर भी द्रवित रही कल जलमयी।-गुत
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