पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८१

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४०१ निदर्शना बज्रपात के तुल्य कभी शरपात नहीं है, ग्रीष्मपात सा दुसह कभी हिमपात नहीं है।-रा० च० उपा० पूर्वाद्ध उपमेय के उत्तराद्ध की दो पंक्तियों में माला रूप से दो दृष्टान्त दिये गये हैं। किन्तु उसे उपदेश व्यर्थ है जो विनाश से बाध्य हुआ। तूर्ण मरण ही मंगल उसका जिसका रोग असाध्य हुआ। यहाँ उपदेश की व्यता और मंगल, दोनों समानधर्मा नहीं हैं। सुख दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन । फिर घन में ओझल हो शशि फिर शशि मे ओझल हो धन ।-पन्त इसमें सुख-दुख और शशि-घन का उपमेयोपमेय-भाव है और साधारण धर्म का भी विव-प्रतिबिव भाव है। यह दृष्टान्त का एक नया रूप है। निदर्शना ( Illustration) जहाँ वस्तुओं का परस्पर सम्बन्ध उनके बिब-प्रतिबिब-भाव का बोध करे वहाँ निदर्शना अलंकार होता है। १ प्रथम निदर्शना-जहाँ वाक्य वा पदार्थ में असंभव संबंध के लिए उपमा को कल्पना की जाय वहाँ प्रथम निदर्शना होती है । निदर्शना र कार में उपमेय और उपमान वाक्यो का असम्भव सम्बन्ध की असम्भवता दूर करने के लिए अन्त में इनका पर्यवसान उपमा में होता है। अर्थात् उपमा को वल्पना से उनका सम्बन्ध स्थाप्ति होता है। सन्धि का प्रश्न तो उठता ही नहीं- सोच लें देश-द्रोहियों से सन्धि ! यह आत्मघात है। चुप बैठ जाना द्रोहियों से सन्धि करके, आँगन में सोना है लगा के आग घर में।-वियोगी तीसरी पंक्ति उपमेय वाक्य है और चौथी उपमान वाक्य । दोनों में असंभव सम्बन्ध है। क्योंकि द्रोहियों से सन्धि और श्राश लगाकर सोना दोनो दो कार्य हैं। एक दूसरा नहीं हो सकता। इतः, द्रोहियों के साथ सन्धि करके बैठ जाना वैसा ही घातक होता है जैसा कि आग लगाकर आँगन में सोना। इस कल्पित उपमा से सम्बन्ध बैठ जाता है। दृष्टान्त में दो निरपेक्ष वाक्य रहते है और दृष्टान्त दिखाकर उपमान से उपमेय की पुष्टि की जाती है। निदर्शना में दोनों वाक्य सापेक्ष रहते हैं। क्योंकि उपमेय का०६०-३१