सार ४२ सार ( Climax) ___ पूर्व-पूर्व कथित वस्तु की अपेक्षा उत्तरोत्तर कथित वस्तु का उत्कर्ष वा अपकर्ष दिखलाना सार अलंकार है। जग में मानवतन दुर्लभ है, उसमें विद्या भी दुर्लभ है। विद्या में कविता है दुर्लभ, उसमें शक्ति और है दुर्लभ ।-अनुवाद इसमें एक से दूसरे का उत्तरोत्तर उत्कष दिखलाया गया है । रहिमन वे नर मर चुके जे कहुँ मांगन जाहिं। ___उनते पहले वे मरे जिन मुख निकसत नाहिं। इसमें उत्तरोत्तर कथित वस्तु का अपकर्ष वर्णित है। मा लादीपक का वर्णन दीपक अलंकार में हो चुका है। बारहवीं छाया तर्कन्यायमूल अलंकार तकन्यायमूल में काव्यलिङ्ग और अनुमान दो अलंकार हैं। ४३ काव्यलिंग ( Poetical Reason or Cause ) जहाँ किसी बात को सिद्ध करने के लिए उसका कारण कहा जाय. वहाँ काव्यलिंग अलंकार होता है। क्षमा करो इस भांति न तुम तज दो मझे, स्वर्ण नहीं हे राम, चरणरज दो मुझे। जड़ भी चेतन मूर्ति हुई पाकर जिसे , उसे छोड़ पाषाण भला भावे किसे । -गुप्त यहाँ चरणरज पाने की अभिलाषा सिद्ध करने को तीसरी पंक्ति में कारण कहा' गया है । इसमें वाक्या में कारण है। और भोले प्रेम ! क्या तुम हो बने वेदना के विकल हाथों से ? जहाँ झूमते गज से विचरते हो, वहीं आह है, उन्माद है, उत्ताप है !-पन्त