पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५२८

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अवज्ञा ४४६ ७२ उल्लास (Abondonment) एक के गुण-दोष से दूसरे को गुण-दोष होने के वर्णन को उल्लास अलंकार कहते हैं। १ गुण से गुण- ___सठ सुपरहि सठ संगति पाई। पारस परसि कुधात सुहाई।-तुलसी यहाँ सज्जन तथा पारस के संघर्ग से शठ और कुषातु के सुधरने की बात है। फूल सुगन्धित करता है देखो युग्म हाथों को।-रा० च० उ० इसमें फूल को सुगंध से हाथ के सुगन्धित होने की बात है। २ दोष से दोष- जा मलयानिल लौट जा यहाँ अवधि का शाप । लगे न लू होकर कहीं तू अपने को आप । -गुप्त इसमें विरहिणी अमिला के विरह-संताप से मलयानिल के तापित होने की बात कही गयी है। ३ गुण से दोष- जो काहू के देहि विपती सुखी भये मानहु जगनुपती। यहाँ दूसरे की विपत्ति (दोष) से सुखी होना (गुण) वर्णित है । ४ दोष से गुण- व्यथा भरी बातों ही में रहता है कुछ सार भरा। तप में तप कर ही वर्षा में होती है उर्वरा धरा। यहाँ धरा के ताप में तप्त होना रूप दोष से वर्षा मे उर्वरा होना रूप-गुण वर्णित है। ७३ अवज्ञा ( Non-abandonment ) एक के गुण-दोष से दूसरे को गुण-दोष न होने को अवज्ञा अलंकार कहते हैं। १ गुण से गुण का न होना- फूलै फलै न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद । मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहि विरचि सम । तुलसी यहाँ सुधा और ब्रह्मा तुल्य गुरु के गुण से बेत का न फूलना-फलना और मूर्ख के हृदय में चेत न होना वर्णित है । का० द०-३४