४५७ "विशेषणविपर्यय कल्पने आओ सजनि उस प्रेम की सजल सुधि में मग्न हो जावें पुनः।-पंत यहाँ सुधि का सजल विशेषण उस व्यक्ति को संमुख ला देती है जो अपनी सुधबुध खोकर श्राँस बहा रहा है। बिछुड़े प्रियपात्र की प्रिय स्मृति में आँखों का सजल होना स्वाभाविक है । सजल की नेत्रों से हटाकर 'सुधि' के साथ लगा देने से भाषा की अर्थव्यंजकता बहुत बढ़ गयी है। तैरती स्वप्नों में दिन-रात मोहिनी छवि-सी तुम अम्लान । कि जिसके पीछे-पीछे नारि रहे फिर मेरे भिक्षुक गान! -दिनकर यहाँ गान भितुक नही, कवि ही भिक्षुक है। सौन्दर्य-पिपासा-कवि के गाने को लालसा-उसे भित्तुक बनाये हुई है। यहाँ विशेषण-विपर्यय से कविता की मार्मिकता बढ़े गयी है। यह दुर्बल दीनता रहे उलझी चाहे ठुकराओ।-प्रसाद यहाँ दुर्बल को दीनता से अभिप्राय है। अकेली भाकुलता-सी प्राण कहीं तब करती मृदु आघात ।-पंत निर्जीव होने से श्राकुलता अकेली या निःसंग नहीं हो सकती। अत:, अकेलेपन को प्राकुलता के लिए विशेषण-व्यत्यय से 'अकेलो' शब्द लाया गया है। नृत्य करेगी गान विकलता परदे के उस पार ।-प्रसाद यहां के विशेषण-विपर्यय से यह अभिप्राय प्रकट होता है कि मै इतनी विकल हो जाऊँगो कि सभी मेरो विकलता को लक्ष्य करेंगे। विकलता के साथ का 'नग्न' विशेषण विकल व्यक्ति को विकलता का आधिक्य-द्योतन करता है। कभी किसी वत्सल अञ्चल ने लिया तुम्हें यदि पाल ।-मिलिन्द अञ्चल वत्सल नहीं हो स्कता। माता ही वात्सल्य रसवाली हो सकती है। यहां का विशेषण-विपर्यय वत्सला मा के वात्सल्य की तीव्रता प्रकट करती है। -वात्सल्य ही है, जो अनाथ बालक पर अञ्चल की छाया करने के लिए मां को प्रेरित करता है और दोनों को प्रेमसूत्र में बांध देता है। ॥ इति शिवम् ॥
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