पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/६१

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___ सबसे पहले शब्द और अर्थ के सहित की बात भामह' ने कही है और उसे काव्य की संज्ञा दी है। फिर रुद्रट२, मम्मट आदि कई प्राचार्यों ने 'सहित' शब्द को उह्य रखकर इसको मान्यता दी। साहित्य की एक परंपरा देखी जाती है । श्रादि कवि वाल्मीकि के आदि- काव्य रामायण के उत्तरकाण्ड में साहित्य-शास्त्र का नाम क्रियाकल्प पाया है। वही शब्द वात्स्यायन के कामसूत्र में भी है। इस क्रियाकल्प शब्द की व्याख्या में जयमंगल लिखते हैं-काव्य करणविधिः-काव्यरचना की रोति ही क्रियाकल्प है अर्थात् काव्यालकार।५ काव्यकरणविधि का अर्थ ही साहित्य-शास्त्र है। दण्डी ने भी क्रियाविधि के नाम से इस शब्द को अपना लिया है। ___ कामन्दकीय नीति-शास्त्र में जहाँ स्त्री-सङ्गनिषेध का प्रसंग आया है वहाँ इसका प्रयोग है। अनुमानतः उसी समय से इस शब्द का वर्तमान अर्थ में प्रयोग किया गया होगा जब कि काव्य-साहित्य को शब्द और अर्थ का सम्मिलित रूप मान' लिया गया होगा। राजशेखर ने नवीं शताब्दी में साहित्य शब्द का प्रयोग किया है। वे कहते है कि "शब्द और अर्थ के यथायोग्य सहयोगवाली विद्या साहित्य-विद्या है।" कवि ने कहा है कि सत्कवि शब्द और अर्थ दोनों की अपेक्षा रखते हैं । भर्तृहरि ने कहा है कि "संगीत, साहित्य और कला से हीन व्यक्ति साक्षात पश है। यहां साहित्य काव्य का हो बोधक है। क्योंकि संगीत और कला के साहचर्य से साहित्य काव्य का हो बोधक है। नैषधकार ने साहित्य को सुकुमार वस्तु कहा है जो काव्य ही है। एक कवि का कहना है कि जिनका मन साहित्या के सुधासमुद्र में मग्न नहीं हुआ"""१२ यहाँ भी साहित्य शब्द काव्य का ही वाचक १. शब्दार्थों सहितौ काव्यम् । २. ननु शद्धार्थों काव्यम् । ३. तदोषौ शब्दार्थों ..." ४. क्रियाकल्पविदश्चैव तथा काव्यविदो जनान् । ५. क्रियाकल्प इति काव्यकरणविधिः काव्यालंकार इत्यर्थः । ६. वाघांविचित्रमार्गाणां निववन्धु क्रियाविधिम् । ७. एकार्थचों साहित्यं संसर्ग च विवर्जयेत् । ८. शब्दार्थयोर्यथावरसहभावेन विद्या साहित्यविया । ६. शब्दार्थों सत्कविरिव द्वयं विद्वानपेक्षते ।-माव १०. संगीतसाहित्यकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ॥ ११. साहित्ये सुकुमारपस्तुनि "" १२. येषां न चेतो ललनातु लग्नं मग्नं न साहित्यसधासमुद्रे । ON