पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/७

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तस्मात् सतामत्र न दूषितानि मतानि तान्येव तु शोधितानि । पूर्वप्रतिष्ठापितयोजनासु मूलप्रतिष्ठाफलमामनन्ति । सामान्यतः मूल पुस्तक में, विशेषतः भूमिका में जो उद्धरण है उनका अनुवाद वा सारांश मूल ग्रन्थ और मूल भूमिका में दे दिया गया है । उद्धरण पादटिप्पणियों में हैं या जो ही है उनका स्थान-निर्देश कर दिया गया है । इससे पाठक उद्धरण को उपेक्षा करके भी मूल ग्रन्थ से लाभान्वित हो सकते हैं। भूमिका में उद्धरणों की अधिकता का कारण मेरा तुलनात्मक दृष्टिकोण ही है। मैंने इनसे सिद्ध कर दिया है कि हमारे प्राचार्यों की काव्य-तत्व-मीमांसा, विश्लेषण-वैभव तथा अन्तदृष्टि की गम्भीरता नवीन अलोचकों को अपेक्षा किसी विषय में किसी प्रकार न्यून नहीं है । पाश्चात्य समालोचक वा टीकाकार उस तत्त्व को अभी पहुंच रहे हैं, जहां हमारे प्राचार्य बहुत पहले पहुँच चुके थे। अवान्तर बातों में युगानुसार भले ही ये पाश्चात्य समीक्षक आगे बढ़े हुए हों। इन उद्धरणों का संग्रह अँगरेजी, बँगला, मराठी तथा हिन्दी की पुस्तकों तथा सामयिक पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर किया गया है । इन सबों में अधिकता समालोच- नात्मक पुस्तको की है । इनका यथास्थान उल्लेख कर दिया गया है। अपने संग्रह से भी अनेक उद्धरण लिये गये हैं। अनेक उद्धरणों से पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के नाम न रहने से अथवा लिखने के समय भूल जाने से नाम न दिये जा सके। ___ मैं इन सब ग्रन्थों ग्रन्थकारों तथा पत्र-पत्रिकाओं का ऋणो हूँ, विशेषतः मराठी 'रस-विमर्श' का, जिसमे मूल 'रस-प्रकाश' के लिखने में तथा बॅगला 'काव्यलोक' का, जिससे विस्तृत भूमिका लिखने में यथेष्ट प्रेरणा मिली है और जिनसे अनेक उद्धरण प्राप्त हुए है। ___ मैंने अभिन्नहृदय मित्र श्राचार्य केशव प्रसाद मिश्र के पुस्तकालय से तथा अनेक विषयों पर उनसे वाद-विवाद करने से यथेष्ट लाभ उठाण है। कविवर आचार्य श्रीजानकीवल्लभ शास्त्री ने छपे फर्मों को पढ़ देने की कृपा की है, जिससे पुस्तक के गुण-दोष तथा मुद्रणशुद्धि का दिग्दर्शन हो गया है। एतदर्थं इन मित्रों का अन्तःकरण से आभारी हूँ। ग्रन्थमाला के व्यवस्थापक श्री अयोध्याप्रसाद झा ने अधिकांश फर्मों के अन्तिम प्रूफ पढ़े है, जिससे छापे की अशुद्धियां कम रह गयो हैं। हमारे प्रतिभाजन साहित्यिक श्रीशुकदेव दुबे 'साहित्यरत्न' और श्रीजयनारायण पाण्डेय ने पुस्तक-ग्रन्थों तथा ग्रन्थकारों-की अनुक्रमणिकायें प्रस्तुत करके बड़ी सहायता की है। मै इन उपकारी मित्रों का हृदय से कृतज्ञ हूँ। इस बार भूमिका को अनुक्रमणिकायें न दी जा सकी। पृथक पुस्तकाकार निकालने के कारण कुछ उद्धरणों की पुनरावृत्ति हो गयी है।