पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०० काव्य में रहन्यवाद .. ग्लेक ने पैगंबरी झोंक में रहन्यवाद की बहुत सी कविताएँ लिखी जिनमें 'येन्शलम'मुन्च है। इसके सन्बन्ध में उसने लिखा- "इसके रचयिता तो नित्य लोक में हैं, मैं तो केवल सेक्रेटरी या खास-कलम हूँ। मैं इसे संसार का सबने भव्य काव्य समझता हूँ।" पर दुनिया की राय इनसे उलटी हुई और वही राय ठीक रहरी । ब्लेक की और कविताएँ अच्छी हुई: पर रहत्यवाद की रचनाएँ निकम्मी ठहराई गई 12 ग्लेक के ५८ वर्प पीई सन् १८८५ में जो नया 'प्रतीक- रहस्यवाद' उठा उसकी प्रवृत्ति भी प्रायः यही चली आती है। कल्पना को एक प्रकार का इलहाम कहना, एक की कल्पना का दूसरे के अन्तःकरण में अन्नात रूप से प्रवेश वताना, बैठे-बैठे भन्य देश और अन्य काल की घटनाएँ देखना, असीम-ससीम का राग अलापना, ये सब बातें आजकल के रहस्यवादी कवि ईट्स (W. B. Yeats ) की पुस्तक ( Ideas of Good and Eril ) में मौजूद हैं। यह साम्प्रदायिक प्रवृत्ति कहाँ तक

  • Of this, he said, he was merely the secretary; "the

authors are in Eternity I consider it the grandest poem this world contains" Unfortopatels the forld's opinion Tas radically different, and its opinion tas entirely correct The mystic writivgs which form so lazge & part of Blake's outpot sere valgeless. -A.B De Mille: "Literature in the Century," (Ihe Ninteenth Century Series)