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काव्य में रहस्यवाद


है। * यह हम पहले कह चुके हैं कि जिस रूप में कवि के हृदय में अनुभूति होती है, ठीक उसी रूप में शब्दों द्वारा प्रेषित नहीं की जा सकती।

इस विलायती 'प्रतीक-रहस्यवाद' के क्षेत्र में प्रकृति का क्या स्थान है, यह स्पष्ट है। जब कि प्रकृति के नाना रूपों और व्यापारों को हम उसकी छाया मानकर चलेंगे जिसके प्रति हमारा प्रेम उमड़ रहा है, तव वे रूप और व्यापार उद्दीपन मात्र होगे। काव्य में उद्दीपन दो प्रकार के होते हैं -- बाह्य और आलम्बनगत। यदि हम छाया को वस्तु के बाहर न मानकर, उसी का कुछ मानें, तो भी वह आलम्बनगत उद्दीपन मात्र होगी। इस प्रकार प्रकृति के साथ हमारा सीधा प्रेम-सम्बन्ध योरप के इस रहस्यवाद के काव्य में न माना जायगा।

यह समझ रखना चाहिए कि काव्यगत रहस्यवाद की उत्पत्ति भक्ति की व्यापक व्यंजना के लिए ही फारस, अरब तथा योरप में हुई जहाँ पैरांबरी मतों के कारण मनुष्य का हृदय बँधा-बँधा ऊब रहा था। जिस प्रकार मनुष्य की बुद्धि का रास्ता रुका हुआ था, उसी प्रकार हृदय का भी। प्रकृति के प्रति भक्तों के भाव जिस हद तक और जिस गहराई तक जाना चाहते थे, नहीं जाने


  • An experience has to be formed, no doubt, before

it 18 communicated, but it takes the form it does, be- cause it may have to be communicated.

-- I. A Richards."Principles of Literary Criticism".