अट्टहास और उन्मत्त नृत्य है। जिस आनन्द-लोक की ओर संकेत
है वह केवल लोकान्तर है। यह संकेत जीवन के जिस वास्तव तथ्य
से कवि को मिला है, उसका स्पष्ट उल्लेख आगे चलकर है --
"अपने लड़कपन के दिनों का स्मरण कीजिए! वे ही हरे-भरे मैदान अमराइयाॅ और नाले आदि जो अब साधारण दृश्य जान पड़ते हैं, कैसी आनन्दमयी दिव्य प्रभा से मंडित दिखाई पड़ते थे! फूल अब भी सुन्दर लगते हैं, चन्द्रमा अब भी शरदाकाश मे सुहावना लगता है, पर इन सबकी वह दिव्य आभा अब पृथ्वी पर कहाँ जो लड़कपन में हृदय को आनन्दोल्लास से भर देती थी।"
शेली की मनोवृत्ति वर्ड्सवर्थ की मनोवृत्ति से बहुत भिन्न थी। उनकी वृत्ति प्रकृति के असामान्य, अद्भुत, भव्य और अधिक प्राचुर्य्यपूर्ण खण्डों मे रमती थी, इसी से उनमें कल्पना का आधिक्य है। सामान्य-से-सामान्य चिर परिचित दृश्यो के माधुर्य्य की मार्मिक अनुभूति उनमे न थी। दूसरी बात यह है कि वे कुछ अपने बँधे हुए विचार मन में लेकर प्रकृति के क्षेत्र में प्रवेश करते थे। वे मनुष्य-जाति की वर्तमान स्थिति में सिर से पैर तक उलट- फेर चाहते थे। राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक सब प्रकार की व्यवस्थाओं और बन्धनों को वे छिन्न-भिन्न देखा चाहते थे। पर इस प्रकार की कुछ विशेष प्रवृत्तियाँ रहते हुए भी प्रकृति की रूप-विभूति का ऐसा श्रृंखलाबद्ध और संश्लिष्ट चित्रण थोड़े से इने-गिने कवियो में ही मिल सकता है।