पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२२
काव्य में रहस्यवाद

"अलास्टर" (Alastor, or the Spirit of Solitude) में एकान्त सुख-शान्ति का अन्वेषी एक कवि सारे भूमण्डल पर अकेला भ्रमण करता है। शेली उसे ऐसी-ऐसी भव्य, विशाल, अदृष्टपूव और अद्भुत चमत्कारपूर्ण दृश्यावलि के बीच से ले गए हैं कि पाठक पढ़कर उनमें गड़ सा जाता है। प्रकृति के ऐसे-ऐसे गूढ़ गह्वरों तथा अनुपम और कमनीय क्रीड़ाक्षेत्रों में वह कवि पहुँचाया गया है जहाँ मनुष्य ने कभी पैर नही रखा। एक नमूना देखिए --

"प्रकृति के गुप्त-से-गुप्त पथों में वह उसकी छाया की तरह जाता है -- जहाँ ज्वालामुखी से उठी हुई लपट की रक्त आभा तुपारमण्डित पर्वत-शिखर के ऊपर छाई हुई है। .........जहाँ ऐसी अटपटी अन्धेरी गुप्त गुफाएँ हैं जो ज्वलन्त और विपाक्त धाराओ के बीच चक्कर खाती बड़ी दूर तक चली गई हैं और जिनमें अब तक न लोभ मनुष्य को ले गया है, न साहस का अभिमान। गुफा के भीतर बड़े-बड़े दीवानखाने पड़े हैं जिनके ऊपर फैली हुई छत हीरे और सीने से जड़ी है। स्फटिक के ऊँचे- ऊँचे खम्भे खड़े हैं। बीच-बीच में उज्ज्वल मुक्तामयी वेदियाँ दिखाई पड़ती हैं। पुष्पराग के सिंहासन इधर-उधर पड़े झलकते हैं"।

कोह काफ (काकेशस) की ऐसी-ऐसी दुर्गम घाटियों के भीतर घूमती-फिरती उस कवि की छोटी-सी नाव बहती जाती है जिसके दोनों ओर ऊपर तो गगनस्पर्शी शिखर और नीचे जल में घुसी