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काव्य में रहस्यवाद


दिखाई पड़ती। यह वास्तव में उपर्युक्त अवतरण-व्यापार का ही परिणाम है। वैचित्र्य के लोभमे भिन्न-भिन्न स्थलों से संगृहीत वाक्यों और पदविन्यासों को एक में समन्वित करना भी तो कठिन ही है।

किसी प्रकृत आलंबन से सीधा लगाव न रखने के कारण भावों मे जो सचाई का अभाव (Insincerity) या कृत्रिमता (Artificiality) रहती है वह तो मूल ही से आई है। यह बात मैं उन रचनाओ के संबंध में कहता हूँ जो वास्तव में रहस्यवाद या छायावाद के अन्तर्गत होती हैं।

एक चौथी बात जिसकी चर्चा छायावाद की कविता के साथ हुआ करती है वह छंद-बंधन का त्याग और लय (Rythm) का अवलंबन है। पर यह एक बिल्कुल दूसरी हवा है जो अमे- रिका की ओर से आई है। इसका रहस्यवाद या छायावाद से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसे एक आन्दोलन के रूप में खड़ा करनेवाला अमेरिका का वाल्ट हिटमैन (Walt Whitman) था जिसने सन् १८५५ ई० में "घास के पत्ते" (Leaves of Grass) नाम की एक कविता केवल लय पर चलनेवाली बिना छंद की पंक्तियों में निकाली। इसके पीछे इस तरह की और बहुत- सी कविताएँ उसने लिखीं जिनमें समीक्षकों ने काव्यत्व, कला- विधान और साहित्यिक शिष्टता की बहुत कमी बताई। एक समीक्षक ने बहुत थोड़े में अपनी राय इस प्रकार दी --

"अनुभूतियो का गड़बड़-झाला, भावो और विचारों का बिखरा हुआ ढेर, सामने रख दिया गया है -- बिना तुक-तुकान्त