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काव्य में रहस्यवाद


कविता पढ़ने की कला सीख लेते तो मैं कोई कविता की पुस्तक बाँचने के लिए कभी खोलता ही न"।*

जिन्होने स्वर्गीय श्रीसत्यनारायण कविरत्न को कभी "या लकुटी अरु कामरिया" पढ़ते सुना है, वे यह अवश्य समझ गए होंगे कि किसी कविता का 'पूर्ण सौन्दर्य्य उसके सुन्दर लय के साथ पढ़े जाने पर ही प्रकट होता है। हाँ, ऊपर छोटे-बड़े चरणो की बात चली थी। छोटे-बड़े चरणों की यदि योजना करनी हो तो भिन्न-भिन्न छंदों के दो-दो चरण रखते हुए बराबर चले चलने में हम कोई हर्ज नहीं समझते। यह हमारा प्रस्ताव मात्र है।

लय भी तो एक प्रकार का बंधेज ही है। जब तक नाद- सौन्दर्य्य का कुछ भी योग कविता में हम स्वीकार करेंगे तब तक बंधेज कुछ न कुछ रहेगा ही। नाद-सौन्दर्य्य की जितनी मात्रा आवश्यक समझी जायगी उसी के हिसाब से यह प्रतिबंध रहेगा। इस बात का अनुभव तो बहुत-से लोगों ने किया होगा कि संस्कृत के मंदाकान्ता, स्रग्धरा, मालिनी, शिखरणी, इंद्रवज्रा,



* I have always known that there was something I disliked about singing, and I naturally dislike print and paper, but now at last I understand why, for I have found something better. I have just heard a peem spo ken with so delicate a sense of its rytbm, with so per fect a respect for its meaning, that if I were a wise man and conld persuade a few people to learn the art, I wonld never open a book of verses again.

-- Ideas of Good and Evil.