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काव्य में रहस्यवाद


जाता है। इस पर पहली बात तो यह पेश हो सेकती है कि किसी भाव या विचार की पूर्णता का सन्वन्ध वाक्य से होता है और वाक्य के लिए आजकल की पद्य-पद्धति के अनुसार यह आव- श्यक नहीं कि वह चरण के अन्त ही में पूरा हो। वह बीच में भी पूरा हो सकता है। यह अवश्य है कि चरण के बीच में एक वाक्य का अन्त और दूसरे का आरम्भ होने से कविता चुपचाप वाँचने के ही अधिक उपयुक्त होती है, लय के साथ ज़ोर से सुनाने के उपयुक्त नहीं होती। जिन्होंने अच्छी लय के साथ किसी सुकंठ के मुँह से कविता का पाठ सुना है वे जानते हैं कि किसी कविता का पूर्ण सौन्दर्य्य उसके जोर से पढ़े जाने पर ही प्रकट होता है। छन्दों की चलती लय में कुछ विशेष माधुर्य होता है। हमें तो यह माधुर्य्य उस्तादों के पक्के गाने से, जिसके 'आ आ आ' के आगे बड़े-बड़े धीरों का धैर्य्य छूट जाता और बड़े-बड़े आलसियों का आसन डिग जाता है, कहीं अधिक आनन्दमग्न करता है। प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि ईट्स (W.B. Yeats) ने भी अपनी ऐसी ही रुचि प्रकट की है --

"पक्के गाने में कुछ ऐसी बात होती है जो मुझे सब दिन से बुरी लगती आई है। इसी तरह कोई कविता काग़ज़ पर छपी हुई मुझे अच्छी नहीं लगती। अब इसका कारण खुला। मैंने एक व्यक्ति को ऐसी सुन्दर लय और भाव के पूरे अनुसरण के साथ कविता पढ़ते सुना है कि यदि मेरे कहने के अनुसार कुछ लोग