या 'छायावाद' काव्य-वस्तु (Matter) से सम्बन्ध रखता है
और 'अभिव्यंजना-वाद' का सम्बन्ध विधान-विधि (Form)
से होता है। 'अभिव्यंजना-वाद' के साथ संयुक्त होकर बँगला से
हिन्दी मे आने के कारण साधारणतः 'छायावाद' के स्वरूप की
ठीक भावना बहुत-से रचयिताओं को भी नहीं होती। वे केवल
ऊपरी रूप-रंग (Form) का अनुकरण करके समझते हैं कि
हम रहस्यवाद या छायावाद की कविता लिख रहे हैं। पर वास्तव
में उनकी रचना में केवल 'अभिव्यंजना-वाद' का अनुसरण रहता
है। 'छायावाद' या 'रहस्यवाद' के अन्तर्गत उन्हीं रचनाओं को
समझना चाहिए जिनकी काव्यवस्तु रहस्यवाद के अनुसार हो।
रहस्यवादी काव्य-वस्तु की पहचान हम पहले बता आए हैं।
यहाँ पर यह सूचित कर देना भी आवश्यक प्रतीत होता है
कि छायावाद के अन्तर्गत बहुत-सी रचनाएँ ऐसी भी हुई हैं
जिनमे अभिव्यंजना-वाद के अज्ञात अनुकरण के कारण बहुत
सुंदर लाक्षणिक चमत्कार स्थान स्थान पर मिलता है। भावना का
बहुत ही साहसपूर्ण संचालन, मूर्तिमत्ता का बहुत ही आकर्षक
विधान और व्यंजना की पूरी प्रगल्भता पाई जाती है। ऐसी
रचना करनेवाले कवियो से आगे चलकर बहुत-कुछ आशा है।
अपनी इस आशा की सफलता के लिए हम अत्यन्त प्रेमपूर्वक
उनसे दो-तीन बातो का अनुरोध करते हैं। पहली बात तो यह
कि वे 'वाद' का साम्प्रदायिक पथ छोड़कर, अपनी सब विशेष-
ताओ के सहित, प्रकृत काव्यभूमि पर आएँ जिसपर संसार के