पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/५५

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काव्य में रहस्यवाद केवल सतत गतियुक्त या परिवर्तनशील के अर्थ में, सत्ता के अभाव के अर्थ में नहीं। अतः असीम और नित्य के लिए अव्यक्त और अगोचर में जाने की कोई जरूरत नहीं। ब्रह्म के दोनो रूप असीम और नित्य हैं । इस मूर्त विराट् के भीतर न जाने कितने लोक, ब्रह्मांड, सौरचक्र बनते बिगड़ते रहते हैं, पर इसकी रूप-सत्ता ज्यो-की-त्यों रहती है। अवरक्रोवे ने अपनी 'निकास' ( An Escape) नाम की कविता में असीम और ससीम के अभिलाष के जिस द्वंद्व का वर्णन वड़े रमणीय रूप-विधान के साथ किया है, वह वास्तव में भारतीय दृष्टि से-व्यक्त और गोचर के भीतर ही है। हमारा कहना यही है कि हृदय का अव्यक्त और अगोचर से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता । प्रेम, अभिलाष, जो कुछ प्रकट किया जायगा वह व्यक्त और गोचर ही के प्रति होगा। प्रति-

  • Desire of infinite things, desire of finite-

'tis the wrestle of the twain makes man -As two young winds, schooled 'mong the slopes and caves Of rival bills that each to other look Across & sunken tarn, on a still day, Ran forth from their sundered nurseries, and meet In the middle air And when they close, their struggle is called man, Distressing with his strife and flurry the bland Pool of existence, that lay quiet before Holding the calm Watch of Eternity.