उसका फैलाव औरंगजेब के अत्याचार का-सा न होगा; रावण के
अत्याचार का सा होगा। हाहाकार होगातो जगद्व्यापी होगा। हाय
होगी तो पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक होगी; पर एक
हाय करनेवाला दूसरे हाय करनेवाले से इतनी दूर पर होगा कि
सम्मिलित हाय की दारुणता केवल बाहरी ऑखो की पहुँच के
बाहर होगी। यदि प्राणियों की किसी सामान्य प्रवृत्ति का
चित्रण होगा, तो सामग्री कीटाणुओं की दुनिया तक से लाई जा
सकती है। जगत् रूपी घन-चक्कर और गोरखधन्धे की महत्ता
और जटिलता से चकित होने की चाह में हम अपनी अन्तर्दृष्टि
के सामने एक ओर अणुओ परमाणुओं और दूसरी ओर
ज्योतिष्क पिंडो के भ्रमण-चक्रों तक को ला सकते हैं।
रूखे और (वाह्य करणो को) अगोचर को सरस और गोचर-रूप में लाने का व्यवसाय काव्यक्षेत्र मे बढ़ेगा। ये गोचर रूप झूठे रूपक न होंगे; किसी तथ्य के मार्मिक मूर्त्त उदाहरण होगे। कितने गूढ़, ऊँचे और व्यापक विचारों के साथ हमारे किसी भाव या मनोविकार का संयोग कराया जा सका है, कितने भव्य और विशाल तथ्यों तक हमारा हृदय पहुँचाया जा सका है, इसका विचार भी कवियों की उच्चता स्थिर करने में हुआ करेगा।
काव्य के सम्बन्ध में भाव और कल्पना, ये दो शब्द बराबर
सुनते सुनते कभी-कभी यह जिज्ञासा होती है कि ये दोनों समकक्ष
हैं या इनमें कोई प्रधान है। यह प्रश्न, या इसका उत्तर, ज़रा टेढ़ा