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काव्य में रहस्यवाद


है* जो काव्यों का अनुशीलन और जनता पर उनके प्रभाव का अन्वीक्षण करते आ रहे हैं, वे अच्छी तरह जानते हैं कि कविता- जीवन ही से उत्पन्न है और जीवन के भीतर ही अपनी विभूति का प्रकाश करती है। उसे जीवन से विच्छिन्न बताना कहीं की बात कही लगाना है।

हम कह चुके हैं कि योरप में जो साहित्यिक वाद या प्रवाद चलते हैं उनमें से अधिकतर प्रतिवाद की धुन में अर्थात् प्रतिवर्त्तन (Reaction) के रूप में उठते हैं। सबमें कोई स्थायी मूल्य या तत्त्व नहीं होता; होता भी है तो बहुत थोड़ा। इसी से बहुत से 'वाद', जिनका कुछ दिनों तक फैशन रहता है, आगे चलकर हवा हो जाते हैं। विज्ञान के वादों मे जिस ईमानदारी और सचाई से काम लिया जाता है, साहित्यिक वादों में नहीं। साहित्य के क्षेत्र में हरएक अपनी अलग हवा बहाने के फेर में रहता है और ज़रा-सा बढ़ावा पाने पर किसी एक बात को लेकर हद से बहुत दूर निकल जाता है। "कला का उद्देश्य कला है" इस वाद का प्रचार भी फ्रांस में प्रतिवर्तन के रूप में ही हुआ था। काव्य की पुरानी बँधी रूढ़ियों को हटाकर, केवल मुक्त कल्पना और भावो की अप्रतिवद्ध गति को लेकर योरप मे स्वच्छन्दता-वाद (Romanticism का प्रचार हुआ। वह जब हद के बाहर जाने लगा और काव्य के विषय ऊटपटांग तथा वर्णनशैली


  • इस मत के विशेष विवरण और खण्डन के लिए देखिए हमारा "हिन्दी साहित्य का इतिहास" (पुस्तकाकार सस्करण)।