वाद' के साथ सम्बद्ध होकर उठा है, पर प्रतीक-रूप मे वस्तुओं का व्यवहार अच्छी कविता में वरावर होता आया है। किसी देवता का प्रतीक सामने आने पर जिस प्रकार उसके स्वरूप और उसकी विभूति की भावना चट मन में आ जाती है उसी प्रकार काव्य में आई हुई कुछ वस्तुएँ विशेष मनोविकारो या भावनाओं को जाग्रत कर देती हैं । जैसे,'कमल' माधुर्य्यपूर्ण कोमल सौन्दर्य की भावना जाग्रत करता है;'कुमुदिनी' शुभ्र हास की , 'चंद्र' मृदुल आमा की ;'समुद्र' प्राचुर्य्य, विस्तार और गम्भीरता की ,'आकाश' सूक्ष्मता और अनन्तता की । इसी प्रकार 'सर्प से क्रूरता और कुटिलता का, 'अग्नि' से तेज और क्रोध का'वीणा' से वाणी या विद्या का, 'चातक' से निःस्वार्थ प्रेम का संकेत मिलता है । प्रतीक दो प्रकार के होते हैं। कुछ तो मनोविकारो या भावों को जगाते हैं ( Emotional Symbols ) और कुछ भावनाओं या विचारो को ( Intellectual Symbols )। भावना या कल्पना जगानेवाले प्रतीको के साथ भाव या मनो- विकार भी प्रायः लगे रहते हैं।
ऊपर जिन प्रतीकों के नाम आए हैं वे सव ऐसे हैं जिनके स्वरूप मे ही कुछ न कुछ व्यंजना है। पर उनमे इतनी अधिक
Symbolism,as seen in the writers of our day, would have no value if it were not seen also, under one guise or another, in every great imaginative writer.
-Arthur Symons "The Symbolist Movement in Literature"