BVCL 10295 954.6 H225H(H) एवसन्ये पि बहुशो चा विधत्व समा शिताः ॥ १६ ॥ नागवंशोसवा दिव्याः क्षत्रिया समुदाहृताः । ब्रह्म बंशोझवाश्चान्ये तथाऽकट वंशसम्भवाः ॥ १७ ॥ एतेषु भविता ये को महात्मा विगतज्वरः । उदासीनः कुल गुरुः कलौ सार्द्ध चतुर्गते ॥ १८ ॥ इत्येतत सथितं तात नत्रियाणां विनाशनं । पालनं चापि महेषु कि सन्यच्छ्रोतुमिच्छसि ॥ १६ । इति पूर्व भविष्ये एक चत्वारिंशोध्यायः । श्रीयुत वावू हरिश्चन्द्र महाशयेषु सबिनय निवेदनम् । रह स्त्री के उत्पत्ति विषय में मेरे मित्र पंडित चण्डिप्रसाद जी वर्णन करते हैं कि जब परशुराम यो दशरथ जी के समय में क्षत्रियों को मारते थे तो वे सब खत्री कहि के बचि गये। तब से व खत्री कहलाये अद्यावधि उसी नाम से प्रकट हैं। कोई कहते हैं कि ( रख ) प्रकाश निवासी (त्रि ) तीन ऋषियों के सन्तान हैं अतएव खत्री शब्द से प्रसिद्ध हैं। और जो परशुरास जी को शि- रोनमन पूर्वक प्रणाम करि बद्धांजलि हो गये तब तो परशुराम जीने प्रसन्न हो कर कहा धन्य छौ तम निर्भय रहो क्योंकितम रुटही अर्थात क्रोध बिना ही सोई अब अरोडा कहलाते हैं। और मेरे मित्र पंडित गोकुलचन्द्र जी के पास एक पुस्तक थी । तिस में लिखा है कि लव जी के वंश में एका राजा थे तिन्ह के दो रत्नी थी जो कि छोटी थी वह राजा को परम प्यारी थी जो दुमरी बड़ी थी उस में कुछ रुचि कम थी एक एक पुत्र दोनों में प्रकट सये। छोटी स्त्री ने स्वामी से कहा कि राजा मेरे पुत्र को देवो राजा ने न माना अंत में मंत्री को भी उस रागी ने स्ववरावर्ति कगि के कहवाया कि छोटे को राजा देना चाहिये । मंत्रियों ने कहा कि राजन ! एक को समस्त धन दे दो । एक को केवल राजा दे दो। सुनि के राजा ने बड़े पुत्र को स- मस्त धन दे दिया। छोटे पुत्र को स्वकीय दाजा दे दिया। छोटे पुत्र ने राज्य पाय के बड़े नाता से काहा कि तुम सेरे देश तें निकल जावो तब तो वह अति लाचार होकर मूलवाण नगर अर्थात् सुलतान के पास में चलाआया।
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