[ १३ ] विधा नुनकर उस वंश के दूपण काल कलंक कर्कएका कायरों ने यह कह कर बच गये कि हस बनियों के बोम्स क है। और जब परशुराम जी चले गये तो थे जाकार यहोवंशियों से कहने लगे कि भाई हम लोग विपत्ति में ऐसा क हमार बच गये यह सुन कर उन सबों ने बहुत प्रकार से धिकार दिया और काहा कि रे चांडाल तुम सबों ने यह क्या किया अपनी जननी को कलंक लगाया। हाय ! तुम सब क्षत्री कुल में कलंक पैदा हुए । जात्रो यहां से भागो दूर हटो न तो अभी शिर काट लेंगे क्या तुम सब इस लोगों के तुल्य हो सकते हो। अपने वंश के लोगों की रक्षा क्या करोगे अपने बाप के माथे पाप चढ़ाये अब हम लोग तुम लोगों के साथ कोई व्यवहार न रखेंगे तुम लोगों ने अपने माता पिता को कैसा कलंक लगाया। यह मुन कर ये सब अपनी यो गांकर वहां से आके वैश्यों से कहा कि भाई तुम लोग अपनी जाति अर्थात् वैश्य हम लोगों को बनायो । कारण हम लोग बनियां के बा- तक का हवार वच गये हैं और अपनी सारी व्यवस्था कह गये । बनियांनी ने भी इस बात को अस्वीकार किया अर्थात् कहा कि अाज विपति पड़ने पर तुम लोग बनियां के बाल क कहकर ब चग ये कल विपति पड़ने पर शट्र के नानका कहोगे इस से हस लोग तुम लोग को वैश्य अर्थात् बनियां न बना- वेंगे एस बात को सुनकर ये लोग बड़े बिपद में पड़े और आपस में सलाह करके न क्षती न वैश्य एक विचित जाति खती बन गये । कोई कोई कहते हैं कि खात नामक राजपूत के बंश में एक वेश्या से एन लोगों की उत्पत्ति है और कोई २ कहते हैं कि नहीं ये लोग बढ़ई को वंश में हैं अर्थात् बढ़ई को खाति कहते हैं कान्त प्रभाव से कुछ द्रव्य पाकर वैश्यों को गिनती में होगये । जो हो कोई ऐसा भी कहते हैं कि खेचर नासक राजपूत के वंश में रहती हैं कोई कहते हैं कि ये लोग क्षती हई नहीं हैं क्योंकि परशुराम जी से जो लोग अभय पाये हैं वे लोग वैश्य क्षती हैं जो वैशवारे में रहते हैं। और व्रतियों की दाम को पदवी. अन तक प्रचलित है हम से ये लोग शद्र हैं परन्तु बड़े अपमोम की बात है कि जिनका वाप दास उनके वेटा अपने को न तो लिखते हैं ठीक है “श्यार सुत से र होत निधन कुवर होतदीनन की फेरहोत मेल होत माटि को"। कोई कहते हैं कि यदि इन के राज पुरुष क्षती थे तो भी ये अब क्षती नहीं हो सत्तो कारण खानपान बैठव उठब सब नदियों से न्यारी है और मल्ल पुरुष तो पैठान के भो तो हैं क्योंकि प्राहि-
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