पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१०३

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L१४ । यन से पैठान शब्द बना है और वेणु बंश के कोल भील खेंगे आदि हैं क्या अब वे क्षत्री हो सक्तो कदापि नहीं । कोई काहते हैं कि चीनी लव नादि का व्यापार करने से ब्राह्मण शूद्र होजाता है तो क्षती होकर लवणा वेचे तो क्या रहा इसी भांति से लोग अनेक प्रकार से वतियों की उत्पत्ति वर्ण निर्णय बतलाते हैं परन्तु मैं इन बातों को छोड़ कर टपबंशावली पत्ता देता हूं कि ये लोग क्षती के वंश में हैं.। दोहा-एक समय बसुधा भई, काम धेनु को रूप । पुलक गात रोमांच युत, झारिदियो तन कप ।। तेहि रोमांच के सूत्र ते, प्रगटेउ छती हानि ।। ताको निज निज नाम सभ, विधिवत कहो बलान ! २ । जादव वैश निसेन टप, रखती खाति विजवान । अगरवार सुरवार सौ, पंच गोतिया टप जान ।३ । महीदहार कठिहार पुति, धाकर और सिरमौर । लकारिहार जनवास पुनि, बड़ गुंजर सडिऔर । ४ । सदवरिया प्रगटे बहुरि, काश्यप और सोमवंश । मंडवलिया गाइ सहित, पाछिन्त सौ अवतंश । ५ । काठहरिया उत्पन्न भौ, मलन हांस करिहार ।। पोड पुंडर बुंदेल पुनि, गौरवार भिलवार । ६ । हाडा भए नरवनी, छती अति रगधीर । पङ्ग दात वर्णन करी, विरदावलि पाति बीर । ७ । सोन को और जगार भौ, बहुरि तरेढ गरेर । ठकुराध सांवत कहो, खीची और धंधेर ॥८॥ पुवि सौ प्रगट सिहोगिया, छती टपति कुलीन । किनवार सिंघल टप, कुल पालक अघ हीन ॥ ८ ॥ पुनि प्रगटेउ महरौट टप, कामधेनु ते जानि । करचोलिया छनी भएउ, एहि प्रकार सम वानि ॥ १० ॥ नागवंशी छती सए, गडवरिया सवासेल । जाति वंश कुल उत्तस, पुनि प्रगटेउ रकसेल ॥११ ।। नटेया अगरेढ न्नप, कुश सौ नाम निहार ।। अपर वंश कहां लगि कहौं, भए धेनु औतार ॥ १२ ॥ शिवराससिंह ]