पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/११७

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उसरी बरस ११ वीं चढ़ाई इस की फिर लाहौर पर हुई । १२ वेर गुजरात पर चढ़ाई कर.के सन १०२४ में मोसनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर तोड़ा। इस के पीछे वह हिन्दुस्तान में नहीं आया और सन १°३० में सर गया। इस के बंश वानों का हिन्दुस्तान में केवन पंजाब पर कुछ अधिकार रहा।

राज़नी राज्य निर्बल होने पर जगतदाहक अलाउद्दीन गोषी ने ग़ज़नी के अन्तिम राजा बहराम को मार वार अपने को बादशाह बनाया और कुछ दिन पीछे उस के भतीजे शहाबुद्दीन महम्मद गोरी ने नहराम के पोते को को मार कर गज़नो को राज्य का नाम भी शेष नहीं रक्खा। यही सहमद हिन्दुस्थान में सससानों को राज्य का मूल है। इस ने सन ११७६ से लेकर १६ बरस तक कई वेन हिन्दुस्थान पर चढ़ाई किया किन्तु कुछ फल नहीं हुआ। कान्नौज को राजा जयचन्द को वहकाने से इस ने सन ११८१ में दिल्ली को चौहान राजा पृथ्वीराज पर बड़ो धूम से चढ़ाई किया था किन्तु नगरी नाम का स्थान से वोर युद्ध के पीछे पृथ्वीराज से हार कार वह अपने देश को लौट गया । सन ११८३ में वह बड़ी धूम और कौशन्त से फिर दिल्ली पर चढ़ा। हिन्दुओं की सैना भी बड़ी धूम से इस के मुताबिले को बाहर निकली। चित्तौर के समर सिंह इस सेना के सेनापति थे । युद्ध के डेरे पड़ने पर सुलह की बातचीत होने लगी। शहाबुद्दीन ने कहा हम ने अपने भाई को सब वृत्तान्त लिखा है उत्तर आने तक लड़ाई बन्दर है । हिन्दू सैना इस बात पर विश्वास कर के शिथिल हो गई थी कि धोखा देकर एकाएक शहाबुद्दीन ने लड़ाई बारम्भ को। बहुत से हिन्दू वीर मारे गए। समरसिंह भी बोर गति को गए । पृथ्वोदाज और उन के कवि चन्द को कैद कर के ग़ज़नी भेज दिया । कहते हैं कि शब्दभेदी दान से अन्धे होने की अवस्था में एक दिन पृथ्वीराज ने शहाबुद्दीन के माई ग़या रद्दीन का प्राण विनाश किया और उसी समय पूर्व संकेतातुमार चन्द कवि ने उन को मारा और उन्हों ने चन्द * को ।भारतवर्ष से हिन्दुओं की स्वाधीनता का मर्य सदा के हेतु अस्त हो गया ।पीछे शहाबुद्दीन ने कन्नौज का राज भी ले लिया और वनारस को भी ध्वंस किया।


  • चन्द की उक्ति-' अब की चढ़ी कमान को जानै फिरि कब चढे । जिनि चुके चौहान इक्कै मारय इक्क सर ॥'