पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/११९

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दिया और आप वादशाह हा । (१२८५] बादशाह होते ही इस जलालुद्दीन के दो लड़के और उस के पक्षपाती कई मुर्दारों को क़त्ल किय और फिर बड़ी निर्दयता से गुजरात जीता। अनेक प्रकार के टुखदाई क प्रचलित दिए। १३.. में रणथम्भौर का प्रसिद्ध किला एक बरस की लडा में टूटा और शरणागतवत्सल परम वीर हम्मीर राजा सकुटुम्ब वीरों की गति को गया। १३.३ में इस ने चित्तौर पर चढाई की । राजा रतनसेन से प्रथस मित्रता दिखन्ना क- फिर विश्वासघात कर के उन को बन्दी किया किन्तु गनी पद्मावती अपनी बुद्धि और वीरता से गजा को छुडा ले गई । फिर तो क्षत्रियो ने जोवनाशा छोड कर वडा युद्ध किया और के सव वीरगति को गए । छत्रानियां सब चिता पर बैठ कर भस्म हो गई। १३.६ मे देवगढ़ के राजा के कर न देने से फिर से उस पर चढ़ाई हुई और निा तोडा। १३१. में कर्णाटक में हार समुद्र के राजा वल्लालदेव को और तैलंगके राजा लक्षधर के जीता । १३११ में विद्रोह के कारण एक दिन में इस ने अपने पन्दरह हजार मुगल सिपाही कटवा दिए । यह अति उग्र अभिमानी और निष्ठुर था। इस के मृत्यु के वर्ष १३१६ में देवगढ़ के राजा के जामाता राजा हरपाल ने देवगढ और गुजरात को जीत कर खतंत्र कर दिया। इम के मरने पर सनिक काफूर नामक एक इस के गुलाम ने जिसे इम ने मर्दार बनाया था इस के दो बड़े बेटों को अन्धा कर दिया और तोसरे मुबारक को अन्धा करते समय प्रापही मारा गया । कुतुबुद्दीन मुबारक ने बादशाह हे कर [ १३१७ ] अपने छोटे भाई को अन्धा किया और वहुत से मर्दारो को मार डाला। यह प्रति विषयो और मूर्ख था । इस के एक हिन्दू गुलाम ने जिस का ममल्मान होने पर खुमरो नाम हुआ था १३१८ में मन्नावार जीता और १३२. में सुबारक को सकुटुम्ब काट कर आप राज


+ मीर मुहम्मदगाह मंगोल नामक एक सर्दार पर अपनी एक उपपत्नी से व्याभिचार के सन्देह से अलाउद्दीन ने क्रोध करके उस के वध की आज्ञा दी थी.वह हम्मीर की शरण गया. वादशाह ने हम्मीर से मंगोल को मांगा किन्तु धीर वीर हम्मीर ने अपने शरणागत को नहीं दिया इसी पर अलाउद्दीन चढ़ दौड़ा.गजा हम्मीर के विषय में यह दोहा जगतप्रमिद्ध है-सिह सुअन सुपुरुष नयन गालि फलै इस मार । निरिया तेल हमीर हठ चढे न दूजी बार ॥