पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१२३

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करके रोहतासगढ़ के राजा को सार कर उस के किले में अपना परि वार रख कर हुमायूं पर एकबारगो ऐसा धावा किया कि बनारस औ कन्नौज तक जीत लिया। १५३८ में फिर एक बेर शेरशाह ने हुमायं क पीछा किया और गंगा में कूद कर हुमायूं ने अपने को बचाया । सन चा लिस में फिर हुसायूं शेरशाह से हारा और गंगा में तैर कर किसी तर फिर बच गया। दिल्ली पहुंच कर अपना परिवार लेकर वह लाहोर गय किन्तु वहां भी शेरशाह ने पीछा न छोड़ा इस से वह सिन्ध होता हुआ राजपुतान में आया। यहीं इसी आपत्ति के समय असरकोट में १५४२ में अकबर का जन्म हुआ । डेढ़ बरस अमरकोट के राजा के प्राशय में रह क हुमायूं ईरान में चला गया और वहां के बादशाह की सहायता से वहीं बहने लगा। शेरशाह ने ( १५४ ० ) हुमायूं के अधिनस्थ सब राज्य अधिकार करके रायसेन माड़वार और मालवा जीता। [ १५४५ ] चित्तौर जीतने का दृढ़ संकल्प कर के मार्ग में कालिंजर का किला घेरे हुए पड़ा था कि रात को मेगजीन में आग लगने से झुलस कर प्राण त्याग किया। यह बड़ा धीर और बुद्धिमान था। घोड़े की डांक, राजखकर, सराय, तहसीलदार आदि कई नियम उसने उत्तम बांधे थे । बंगाले से सुलतान तक एक राजमार्ग इसने बनवाया था। इस के मरने पर इस का छोटा बेटा जलाल खां सलीम शाहमर नाम रख कर बादशाह हुआ । १५५३ में इस के मरने पर इस के बेटे फिरो- जशाह को सार कर इस का साला सुहम्मदशाह अदली बादशाह हा । यह राज्य का सब भार हेमं नामक एक बनिये के ऊपर छोड़ कर आप अति विषय में प्रवृत्त हुआ । चारो ओर बलवा हो गया। इसी बंश के इबराहीम सर ने दिल्ली आगरा, सिकंदर सूर ने पंजाब और मुहम्मद सूर ने बंगाता जीत लिया। हुमायूं जो हिन्दुस्तान जीतने का अवसर देख ही रहा था इस समय को अनुकूल समझ कर पंद्रह हजार सवार ले कर सिन्ध उतर कर हिन्दुस्तान में पाया प्रौ [ १५५५ ] पंजाब जीतता हुआ दिल्ली में पहुंच वार फिर से भारतवर्ष के सिंहासन पर बैठा । जितने देश अधिकार से निकाल गए थे सब जीते गए । किन्तु मृत्यु ने उस को राज भोग ने न दिया और एक दिन संध्या को महल की सोढ़ी पर से पैर फिसल कर गिरने से ( १५५६ ] परलोक सिधारा ।